सामाजिक संगठनों की भूमिका (ROLE OF SOCIAL ORGANISATIONS) | Current Affairs | Vision IAS
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संक्षिप्त समाचार

19 Aug 2025
5 min

लोक सभा अध्यक्ष ने देश और समाज के विकास में सामाजिक संगठनों की भूमिका पर जोर दिया।

  • सामाजिक संगठन का अर्थ है कि समाज में लोग और समूह किस तरह से एक-दूसरे के साथ जुड़े होते हैं और कैसे आपस में एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। ये संगठन औपचारिक (जैसे धार्मिक संस्थाएं, शैक्षिक संगठन, श्रमिक संघ आदि) या अनौपचारिक (जैसे परिवार, मित्र, सहकर्मी समूह आदि) हो सकते हैं।

राष्ट्र निर्माण में सामाजिक संगठनों की भूमिका

सामाजिक संस्थाएं

राष्ट्र निर्माण में भूमिका

परिवार

यह सामाजिक मानदंडों एवं मूल्यों और अच्छे नैतिक व्यवहारों को सिखाने वाली ऐसी प्राथमिक पाठशाला है, जो अधिक सामंजस्यपूर्ण व समावेशी समाज बनाने में मदद करती है।

धार्मिक संस्था

यह नैतिक रूपरेखा प्रदान करती है और करुणा, क्षमा एवं दान जैसे मूल्यों को मजबूत करती है। साथ ही, सामाजिक व्यवस्था और सामुदायिक सामंजस्य को बढ़ावा देती हैं; धर्मार्थ व कल्याणकारी कार्यों से गरीबी को कम करने में मदद मिल सकती है आदि।

शैक्षिक संस्था

यह ज्ञान एवं कौशल सीखाने, और कड़ी मेहनत, अनुशासन, टीम वर्क व मूल्यों को बढ़ावा देने, व्यक्तियों को विभिन्न भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के लिए तैयार करने आदि में मदद करती है।

गैर-सरकारी संगठन

नीतियों को दिशा देना और प्रभाव डालना: उदाहरण के लिए- RTI अधिनियम को प्रभावित करने में मजदूर किसान शक्ति संगठन (NGO) की भूमिका रही है।

जागरूकता एवं क्षमता निर्माण: जैसे- लैंगिक मुद्दों में सेवा/ SEWA (ट्रेड यूनियन) की भूमिका।

बेहतर सेवा वितरण: उदाहरण- शिक्षा के क्षेत्र में प्रथम NGO की भूमिका।

लोकतंत्र को मजबूत करना: जैसे- राजनीति को अपराध मुक्त करने के प्रयास में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की भूमिका। 

निष्कर्ष

स प्रकार, प्रत्येक सामाजिक संस्था व्यक्तियों के जीवन के साथ-साथ समुदायों के सामूहिक ताने-बाने को भी आकार देने में एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा मानव समाज के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य को आकार देती है। इन संस्थाओं के महत्त्व को पहचानना और समझना, भविष्य की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनने के लिए तथा संधारणीय, समावेशी व अनुकूलनशील समाजों के निर्माण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

CARA ने बाल दत्तक ग्रहण के सभी चरणों में परामर्श सहायता को मजबूत करने के लिए राज्यों को निर्देश जारी किए।

  • ये निर्देश किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (2021 में संशोधित) तथा दत्तक ग्रहण विनियम, 2022 के तहत राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन एजेंसियों (SARAs) के लिए जारी किए गए हैं।

SARAs को दिए गए मुख्य निर्देश:

  • सभी प्रमुख हितधारकों जैसे- संभावित दत्तक ग्रहण करने वाले माता-पिता, दत्तक ग्रहण किए गए बच्चे और जैविक माता-पिता के लिए मनोसामाजिक सहायता ढांचे को मजबूत किया जाए।
  • SARAs को जिलों और राज्य स्तर पर योग्य परामर्शदाताओं को नामित/ पैनल में शामिल करना होगा। 
  • यदि विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसियां (SAAs) या जिला बाल संरक्षण इकाइयां (DCPUs) किसी अन्य स्थिति में भी परामर्श की आवश्यकता महसूस करें, तो मनोसामाजिक हस्तक्षेप की व्यवस्था की जाए।

भारत में बाल दत्तक ग्रहण

  • नोडल मंत्रालय: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय।
  • प्राथमिक कानून: भारत में दत्तक ग्रहण मुख्य रूप से हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 तथा किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2000 द्वारा नियंत्रित होता है।
  • नोडल केंद्रीय एजेंसी: केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) घरेलू और अंतर्देशीय दत्तक ग्रहण को विनियमित करता है। CARA को किशोर न्याय अधिनियम के तहत स्थापित किया गया है।
  • बच्चों के संरक्षण और अंतर्देशीय दत्तक ग्रहण में सहयोग पर हेग कन्वेंशन (1993): यह अंतर्देशीय दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया को नैतिक, कानूनी और पारदर्शी बनाता है। साथ ही, बाल तस्करी को रोकने में भी मदद करता है।
  • राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों की जिम्मेदारी: राज्य और केंद्र शासित प्रदेश किशोर न्याय अधिनियम को निम्नलिखित संस्थानों के माध्यम से लागू करते हैं:
    • राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन एजेंसियां (SARA);
    • स्थानीय बाल कल्याण समितियां; तथा 
    • जिला बाल संरक्षण इकाइयां (DCPUs)

युवा आध्यात्मिक शिखर सम्मेलन ने राष्ट्रीय युवा-नेतृत्व वाले नशा-विरोधी अभियान की नींव रखी है। यह शिखर सम्मेलन व्यापक ‘मेरा युवा (MY) भारत फ्रेमवर्क’ का हिस्सा है।

  • मेरा युवा (MY) भारत, केंद्र सरकार द्वारा स्थापित एक स्वायत्त निकाय है। इसका उद्देश्य युवा विकास और युवा-नेतृत्व वाले विकास के लिए प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित एक संस्थागत तंत्र प्रदान करना है।

काशी घोषणा-पत्र के बारे में

  • इसमें नशामुक्ति आंदोलन के लिए 5 साल का रोडमैप निर्धारित किया गया है।
  • इसमें मादक पदार्थों के सेवन को केवल एक व्यक्तिगत समस्या के रूप में ही नहीं बल्कि एक बहु-आयामी लोक स्वास्थ्य और सामाजिक चुनौती के रूप मानने पर राष्ट्रीय सहमति बनी है।
  • अपनाए जाने वाला दृष्टिकोण:
    • यह बहु-मंत्रालयी समन्वय के लिए एक संस्थागत तंत्र का प्रस्ताव करता है। इस तंत्र में एक संयुक्त राष्ट्रीय समिति का गठन, वार्षिक प्रगति की रिपोर्टिंग तथा प्रभावित व्यक्तियों को सहायता सेवाओं से जोड़ने के लिए एक राष्ट्रीय मंच शामिल है।
    • नशे से बचाव के लिए आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और प्रौद्योगिकी प्रयासों का एकीकरण किया जाएगा।

नशीले पदार्थों के दुरुपयोग को समाप्त करने के लिए उठाए गए अन्य कदम

  • नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक सब्सटेंस अधिनियम, 1985;
  • नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक सब्सटेंस अवैध व्यापार रोकथाम अधिनियम, 1988;
  • नेशनल एक्शन प्लान फॉर ड्रग डिमांड रिडक्शन (NAPDDR), 2018-25;
  • नशा मुक्त भारत अभियान (NMBA), 2020 आदि। 

भारत में नशीले पदार्थों के दुरुपयोग की स्थिति (मादक पदार्थों के दुरुपयोग पर राष्ट्रीय सर्वेक्षण, 2019 के अनुसार)

  • शराब के उपयोग की व्यापकता: वर्तमान में 10 से 75 वर्ष की आयु के बीच 14.6% लोग शराब का सेवन करते हैं।
  • कैनबिस और ओपिओइड (जैसे- हेरोइन) भारत में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाला प्रचलित हो रहा मादक पदार्थ है।

नेशनल एजुकेशन सोसाइटी फॉर ट्राइबल स्टूडेंट्स (NESTS) ने यूनिसेफ इंडिया के साथ मिलकर तलाश (TALASH) पहल शुरू की है। NESTS केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय के तहत कार्य करता है। 

  •  तलाश (TALASH) से आशय है; ट्राइबल एप्टीट्यूड, लाइफ स्किल्स एंड सेल्फ-एस्टीम हब।

तलाश (TALASH) पहल के बारे में

  • यह एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास (शैक्षणिक एवं व्यक्तित्व विकास दोनों) को समर्थन देना है। 
    • EMRS केंद्रीय क्षेत्रक योजना है। इसके तहत उन ब्लॉकों में जनजातीय विद्यार्थियों को आवासीय शिक्षा की सुविधा प्रदान की जाती है जहाँ अनुसूचित जनजातियों (ST) की आबादी 50% से अधिक होती है।
  • यह एक इनोवेटिव डिजिटल प्लेटफॉर्म है जो निम्नलिखित सुविधाएं प्रदान करता है:
    • साइकोमेट्रिक मूल्यांकन: यह NCERT की ‘तमन्ना’ पहल से प्रेरित है। 
    • कैरियर परामर्श,
    • जीवन कौशल और आत्म-सम्मान मॉड्यूल,
    • शिक्षकों के लिए ई-लर्निंग। 

रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर  

  • वैश्विक भुखमरी 2022 के स्तर से घटकर 2024 में अनुमानित 8.2% रह गई। 
    • हालांकि, अफ्रीका और पश्चिमी एशिया के अधिकांश उप-क्षेत्रों में भुखमरी बढ़ती जा रही है। 
  • वर्ष 2021 से मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा में कमी आई है।
  • 2023 और 2024 के दौरान खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ीं हैं। इससे वैश्विक स्तर पर स्वस्थ आहार की औसत लागत बढ़ गई है।
    • महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया भर में खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति को बढ़ा दिया है। 
  • इस वृद्धि के बावजूद, विश्व में स्वस्थ आहार का खर्च वहन करने में असमर्थ लोगों की संख्या 2019 के 2.76 बिलियन से घटकर 2024 में 2.60 बिलियन हो गई।
  • 15-49 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं में एनीमिया और वयस्क लोगों में मोटापा वैश्विक स्तर पर बढ़ रहा है। वर्ष 2012 में 12.1% तथा 2022 में 15.8% लोग मोटापे से ग्रसित थे।

भारत से संबंधित निष्कर्ष 

  • भारत को छोड़कर, अन्य निम्न-मध्यम आय वाले देशों में स्वस्थ आहार का खर्च वहन करने में असमर्थ लोगों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है। 
  • केरल में मछुआरों और थोक विक्रेताओं द्वारा मोबाइल फोन के उपयोग से मूल्य असमानता एवं अपव्यय में कमी आई है।

मुख्य सिफारिशें 

  • समयबद्ध और लक्षित राजकोषीय उपाय किए जाने चाहिए, जैसे- आवश्यक वस्तुओं पर अस्थायी कर राहत एवं सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम। 
  • बाजारों को स्थिर करने के लिए राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों को अनुरूप बनाया जाना चाहिए।
  • मूल्य अस्थिरता को प्रबंधित करने और सट्टेबाजी को रोकने के लिए मजबूत कृषि बाजार सूचना प्रणालियां महत्वपूर्ण हैं। 
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