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अंतर्राज्यीय जल विवाद (INTER STATE WATER DISPUTE: ISWD) | Current Affairs | Vision IAS
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अंतर्राज्यीय जल विवाद (INTER STATE WATER DISPUTE: ISWD)

Posted 19 Aug 2025

Updated 26 Aug 2025

1 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

केंद्र सरकार ने पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच जल-बंटवारा विवाद का समाधान करने के लिए गठित 'रावी और ब्यास जल अधिकरण' के कार्यकाल को बढ़ा दिया है।

  • यह अधिकरण 1986 में अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (ISRWD) अधिनियम, 1956 के तहत गठित किया गया था।

अन्य संबंधित तथ्य 

  • इसके अलावा, केंद्र सरकार पोलावरम बनकाचेरला लिंक परियोजना (PBLP) और तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश के बीच लंबित अन्य अंतर्राज्यीय जल मुद्दों से जुड़ी चिंताओं की जांच के लिए एक उच्च-स्तरीय तकनीकी समिति का गठन करेगी। 
  • इसके अतिरिक्त, ओडिशा और छत्तीसगढ़ ने महानदी जल विवाद को 'सौहार्दपूर्ण' ढंग से सुलझाने की इच्छा व्यक्त की है।
  • भारत में अंतर्राज्यीय जल विवाद का इतिहास ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से जुड़ा है, जब ब्रिटिश-नियंत्रित मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर रियासत के बीच कावेरी जल विवाद हुआ था।

अंतर्राज्यीय जल विवाद (ISWD) के लिए उत्तरदायी कारक

  • नदी जल संसाधनों तक असमान पहुंच
    • भौगोलिक कारक: जब कोई नदी दो राज्यों से होकर बहती है, तो सामान्यतः नदी के उद्गम स्रोत के निकटवर्ती राज्य को अधिक लाभ होता है। इससे नदी के उद्गम स्रोत के निकटवर्ती राज्य और नदी के उद्गम स्रोत से दूर अवस्थित राज्य के बीच विषमता उत्पन्न होती है।
    • राज्य पुनर्गठन: स्वतंत्रता के बाद राज्यों की सीमाओं के पुनर्गठन ने नदी बेसिन-आधारित सीमा वितरण पर कम जोर दिया है।
  • बढ़ती मांग: तीव्र जनसंख्या वृद्धि, कृषि विस्तार, शहरीकरण और आर्थिक विकास ने जल की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि की है।
  • विकास परियोजनाएं: जब कोई राज्य बड़ी जल परियोजनाएँ (जैसे बाँध बनाना) शुरू करता है, तो दूसरे राज्यों के साथ विवाद खड़े हो जाते हैं (जैसे- नर्मदा, कावेरी आदि नदी बेसिन विवाद)।
  • जल प्रशासन की बिखरी हुई व्यवस्था:
    • केंद्र सरकार: अंतर्राज्यीय जल विवादों के प्रबंधन के लिए कोई ठोस ढांचा नहीं है।
    • राज्य सरकार: जल प्रबंधन को लेकर अलग-अलग और संकीर्ण सोच।।
    • अवैज्ञानिक दृष्टिकोण: नदी बेसिन (पूरे नदी क्षेत्र) के आधार पर पानी का प्रबंधन नहीं किया जाता।
  • उचित आंकड़ों का अभाव: नदी के बहाव, नदी में पानी की मात्रा आदि के आंकड़े अलग-अलग तरीके से इकट्ठा होते हैं, जिससे विवाद और गहराते हैं।

विवाद समाधान हेतु कानूनी और संवैधानिक ढांचा

  • अनुच्छेद 262: अंतर्राज्यीय जल विवादों के न्यायनिर्णयन का प्रावधान करता है। 
    • अनुच्छेद 262(1): संसद कानून द्वारा किसी भी अंतर्राज्यीय जल विवाद के न्यायनिर्णयन का प्रावधान कर सकती है। 
    • अनुच्छेद 262(2): संसद यह भी प्रावधान कर सकती है कि न तो सुप्रीम कोर्ट और न ही कोई अन्य न्यायालय ऐसे किसी विवाद या शिकायत के संबंध में अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करेगा। 
  • संविधान के अनुच्छेद 262 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए संसद ने निम्नलिखित दो कानून बनाए हैं-
    • नदी बोर्ड अधिनियम, 1956: यह अधिनियम केंद्र सरकार को राज्यों के साथ परामर्श से अंतर्राज्यीय नदियों और नदी घाटियों के विनियमन एवं विकास के लिए नदी बोर्ड स्थापित करने का अधिकार देता है।
    • अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956: राज्य द्वारा अनुरोध किए जाने पर केंद्र सरकार अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद के न्यायनिर्णयन के लिए एक अधिकरण स्थापित कर सकती है।
  • सातवीं अनुसूची
    • संघ सूची की प्रविष्टि 56: केंद्र सरकार अंतर्राज्यीय नदियों और नदी घाटियों का विनियमन एवं विकास कर सकती है। 
    • राज्य सूची की प्रविष्टि 17: "राज्य जल, अर्थात् जल-आपूर्ति, सिंचाई और नहरें, जल निकासी एवं तटबंधों, जल भंडारण तथा जल-शक्ति विषयों पर कानून बना सकते हैं। हालांकि, ये विषय सूची-I (संघ सूची) की प्रविष्टि 56 के प्रावधानों के अधीन हैं।

ISWD के समाधान में चुनौतियां

  • विलंब: अत्यधिक देरी एक प्रमुख मुद्दा है, जो निम्नलिखित तीन मुख्य क्षेत्रों में होती है-
    • अधिकरणों का गठन: उदाहरण के लिए- दशकों से लंबित अनुरोधों के बाद कावेरी अधिकरण का गठन 1990 में किया गया था।
    • अधिकरण के निर्णय की अवधि: उदाहरण के लिए- नर्मदा: 9 वर्ष, कृष्णा: 4 वर्ष, गोदावरी: 10 वर्ष आदि।
    • निर्णय की अधिसूचना और प्रवर्तन: अधिकरणों का आदेश सरकारी गजट में देर से प्रकाशित होता है (उदाहरण: कृष्णा विवाद में 3 साल, गोदावरी विवाद में 1 साल की देरी)। इससे फैसले को लागू करने पर भी अनिश्चितता बनी रहती है।
      • ISRWD अधिनियम, 1956 निर्दिष्ट करता है कि किसी अधिकरण का निर्णय एक बार आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित होने के बाद, "सुप्रीम कोर्ट के आदेश या डिक्री के समान ही प्रभावी होगा।"
  • राजनीतिकरण: जल विवादों को अक्सर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से निपटाया जाता है, जिसमें पर्यावरणीय, सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं की अनदेखी की जाती है।
  • हितधारकों की भागीदारी का अभाव: पारंपरिक दृष्टिकोण अक्सर राज्य सरकारों, स्थानीय समुदायों, देशज आबादी और अन्य हितधारकों के हितों एवं चिंताओं की अनदेखी करते हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप: राज्यों द्वारा मुद्दों को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने से अधिकरणों का निर्णय व्यावहारिक रूप से अप्रभावी हो जाता है।
    • हालांकि, सुप्रीम कोर्ट मूल विवाद का निर्णय नहीं कर सकता। वह अधिकरण के निर्णयों की व्याख्या कर सकता है, और यदि आवश्यक हो, तो पक्षों को आगे स्पष्टीकरण के लिए अधिकरण के पास वापस भेज सकता है।
    • उदाहरण के लिए- कावेरी जल विवाद अधिकरण ने 2007 में अपनी रिपोर्ट और निर्णय प्रस्तुत कर दिए थे। इसके अलावा, संबंधित राज्यों ने कावेरी अधिकरण की रिपोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिकाएं दायर की थी। परिणामस्वरूप, सुप्रीम कोर्ट ने जल वितरण संबंधी इस विवाद पर अंतिम निर्णय दिया है, जिसमें जल आवंटन में मामूली बदलाव भी शामिल है।

ISWD के समाधान हेतु किए गए अन्य उपाय

  • अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019
    • अंतर्राज्यीय विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए विवाद समाधान समिति।
    • बहु-पीठों वाले एकल अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिकरण की स्थापना।
    • निर्णय पूरा करने के लिए सख्त समय-सीमा।
    • प्रत्येक नदी बेसिन के लिए केंद्रीय स्तर पर डेटा बैंक।
  • ड्राफ्ट नदी बेसिन प्रबंधन विधेयक, 2018
    • उद्देश्य: यह विधेयक भागीदारी, सहयोग, जल के न्यायसंगत और सतत उपयोग, एकीकृत नदी-बेसिन प्रबंधन आदि के सिद्धांत-आधारित दृष्टिकोण का प्रस्ताव करता है।
    • नदी बेसिन मास्टर प्लान का निर्माण। 
    • नदी बेसिन प्राधिकरण की स्थापना। 
  • राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना: इसका उद्देश्य जल अधिशेष क्षेत्र से जल की कमी वाले क्षेत्र में जल स्थानांतरित करना है। इससे अंतर्राज्यीय जल विवादों में संभावित रूप से कमी आएगी।

आगे की राह

  • सहकारी संघवाद: केंद्र सरकार को राज्यों के बीच पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान तक पहुंचने के लिए मध्यस्थ और सुविधाकर्ता की भूमिका निभानी चाहिए।
    • ISWDs पर संवाद और चर्चा के लिए नीति आयोग के तहत एक मंच का गठन करना चाहिए।
  • नीतिगत हस्तक्षेप
    • ISWDs को अंतर्राज्यीय परिषद के अंतर्गत लाना (अनुच्छेद 263) चाहिए। 
    • अधिकरणों के कामकाज को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 में संशोधन करना चाहिए।
  • अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन विधेयक) और नदी बेसिन प्रबंधन विधेयक, 2018: विवाद समाधान में तेजी लाने तथा मौजूदा अधिकरण प्रणाली में विलंब को दूर करने के लिए इन प्रस्तावित कानूनों पर परामर्श किया जाना चाहिए।
  • डेटा बैंक और सूचना प्रणाली: नदी घाटियों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर डेटा बैंक और सूचना प्रणाली बनाई जानी चाहिए, ताकि बेहतर निर्णय लिए जा सकें।
    • नदी बेसिन से जुड़े हुए डेटा को एकत्र करने, जल प्रवाह का प्रबंधन करने और नदी जल के अंतिम उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए AI का उपयोग करना चाहिए।
  • हितधारक जुड़ाव: जल संसाधनों की योजना बनाने और प्रबंधन में समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
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  • ISWD
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