हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के एक साथ चुनाव आयोजित करने से संबंधित दो विधेयकों को मंजूरी दी है।
- इनमें से एक विधेयक का उद्देश्य एक साथ चुनाव कराने के लिए संवैधानिक प्रावधानों को संशोधित करना है। दूसरे विधेयक द्वारा उन केंद्र शासित प्रदेशों से संबंधित कानूनों के प्रावधानों में संशोधन किया जाएगा, जहां विधान सभाएं हैं, ताकि अन्य विधान सभाओं के साथ उनके कार्यकाल को संरेखित किया जा सके।
- इससे पहले, पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च-स्तरीय समिति ने लोक सभा, राज्य विधान सभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने हेतु एक रोडमैप की सिफारिश की थी।
- एक साथ चुनाव कराने का अर्थ है लोक सभा, सभी राज्य विधान सभाओं तथा स्थानीय निकायों यानी नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव एक साथ आयोजित कराना।
एक साथ चुनाव की आवश्यकता
- शासन पर प्रभाव: बार-बार चुनाव होने से विकास कार्यों में बाधा व देरी होती है तथा आदर्श आचार संहिता (MCC) लागू होने के कारण नीतिगत निर्णय प्रभावित होते हैं।
- वित्तीय बोझ: एक साथ चुनाव कराने से धनराशि का अधिक प्रभावी और तर्कसंगत उपयोग होगा, जिसे अन्य विकास कार्यों में लगाया जा सकता है।
- मानव संसाधन: एक साथ चुनाव होने से सुरक्षाबलों और अन्य चुनाव अधिकारियों (जैसे शिक्षकों) को लंबे समय तक उनके प्राथमिक कर्तव्यों से दूर नहीं रहना पड़ेगा।
- अन्य: मतदाता भागीदारी में वृद्धि, अदालतों पर कम बोझ, आदि।
एक साथ चुनाव से जुड़ी चिंताएं निम्नलिखित हैं:
- इससे क्षेत्रीय दलों की चुनावी संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है;
- 5 साल में एक बार लोक जांच के कारण राजनीतिक जवाबदेही में कमी आ सकती है;
- बड़ी संख्या में EVMs की आवश्यकता जैसे तार्किक मुद्दे उत्पन्न हो सकते हैं आदि।
राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशें
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