हाल ही में, इसरो ने अपने CE20 क्रायोजेनिक इंजन का सी-लेवल हॉट टेस्ट सफलतापूर्वक पूरा किया। यह परीक्षण तमिलनाडु के महेंद्रगिरि स्थित इसरो प्रोपल्सन कॉम्प्लेक्स में किया गया।
क्रायोजेनिक इंजन के बारे में

- क्रायोजेनिक तकनीक में बहुत कम तापमान पर रॉकेट प्रणोदक का उपयोग किया जाता है। इसमें लिक्विड ऑक्सीजन (LOX) और लिक्विड हाइड्रोजन (LH2) को ऑक्सिडाइजर एवं ईंधन के रूप में अलग-अलग अनुपातों में मिलाया जाता है।
- गौरतलब है लिक्विड ऑक्सीजन -183°C से कम तापमान पर द्रव अवस्था में बना रहता है। वहीं लिक्विड हाइड्रोजन -253°C से कम तापमान पर द्रव अवस्था में बना रहता है।
CE20 क्रायोजेनिक इंजन की विशेषताएं
- इंजन के फिर से शुरू होने की क्षमता: यह मल्टी-एलिमेंट इग्नाइट से युक्त है, जो इंजन को फिर से शुरू करने में सहायक है। यह गगनयान जैसे मिशनों के लिए अधिक महत्वपूर्ण है। इससे अंतरिक्ष में स्पेसक्राफ्ट सही से काम कर सकता है।
- नोजल प्रोटेक्शन सिस्टम: रॉकेट इंजन नोजल के भीतर फ्लो सेपरेशन और होने वाले कंपन को रोकने के लिए एक नवीन नोजल प्रोटेक्शन सिस्टम का परीक्षण किया गया। इससे इंजन के प्रदर्शन और परीक्षण दक्षता में सुधार करने में मदद मिलेगी।
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए क्रायोजेनिक इंजन का महत्त्व
- अंतरिक्ष कार्यक्रम को बढ़ावा मिलेगा: क्रायोजेनिक इंजन रॉकेट की दक्षता और थ्रस्ट को बढ़ाते हैं। इससे भारत अधिक पेलोड्स वाले गगनयान, अन्य स्पेसक्रॉफ्ट्स और अन्य ग्रहों के लिए शक्तिशाली मिशनों को लॉन्च कर सकता है।
- स्वदेशी विकास और आत्मनिर्भरता: क्रायोजेनिक तकनीक में भारत को विशेषज्ञता मिलने से विदेशी तकनीक पर निर्भरता कम होगी।
- भारत छठा देश है, जिसने अपने स्वयं के क्रायोजेनिक इंजन विकसित किए हैं। अन्य पांच देश हैं- संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, रूस, चीन और जापान।
- पेलोड क्षमता में वृद्धि: क्रायोजेनिक इंजन उच्च विशिष्ट आवेग (Higher specific impulse) प्रदान करते हैं। इससे रॉकेट भारी पेलोड ले जाने में सक्षम होते हैं।