रिपोर्ट में माना गया है कि IBC ने भारत में संकटग्रस्त कॉर्पोरेट परिसंपत्तियों के समाधान में सुधार, क्रेडिट अनुशासन बढ़ाने और अनुत्पादक परिसंपत्तियों के पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
- हालांकि, इसके बावजूद समिति ने IBC में लगातार कुछ कमियां देखी हैं, जो इसकी पूर्ण प्रभावशीलता में बाधक बनी हुई हैं।
IBC पर समिति द्वारा उजागर किए गए मुद्दे:
- समिति ने समाधान पेशेवरों (RPs) के आचरण और सक्षमता पर सवाल उठाए हैं।
- सरकारी लेनदारों के दावों और हितधारक प्रतिनिधित्व से जुड़े मुद्दों पर स्पष्टता का अभाव है।
- राष्ट्रीय कंपनी कानून अधिकरण (NCLT) में मामलों के पंजीकरण और न्यायनिर्णयन प्रक्रिया में लगातार देरी देखी गई है।
- समिति ने पाया कि 64% कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रियाएं (CIRP) संहिता के तहत निर्धारित 330 दिन की सीमा को पार कर चुकी हैं।
समिति की मुख्य सिफारिशों पर एक नजर
- उच्च प्राथमिकता वाले मामलों का समयसीमा पर निपटान करने के लिए लिए फास्ट ट्रैक ट्रिब्यूनल्स की स्थापना की जानी चाहिए। इसके अलावा, समय-संवेदनशील मामलों को प्राथमिकता देने के लिए एक तत्काल सूची प्रणाली अपनाई जानी चाहिए।
- 14 दिनों के भीतर आवेदनों की प्रोसेसिंग को अनिवार्य करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 226(3) के समान प्रावधानों को लागू करना चाहिए।
- निजीकृत सेवा केंद्रों की सफलता के आधार पर न्यायिक प्रक्रियाओं में सुधार के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल्स का उपयोग करने की आवश्यकता है।
- यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि NCLT के सदस्यों के पास संबंधित क्षेत्रों में विशेषज्ञता हो, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने फिनोलेक्स इंडस्ट्रीज मामले में निर्दिष्ट किया है।
- सरकारी दावों, विशेष रूप से करों, जुर्माने आदि के समाधान के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश तैयार करने चाहिए।
दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC), 2016 के बारे में:
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