यह रिपोर्ट विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (CSE) और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) ने संयुक्त रूप से जारी की है। इस रिपोर्ट में जल चक्रीयता और संधारणीयता के लिए अपशिष्ट जल उपचार क्षमता पर प्रकाश डाला गया है।
इस रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- भारत में प्रति व्यक्ति ताजे पानी की वार्षिक उपलब्धता में गिरावट: वर्तमान में यह 1,700 घन मीटर से भी कम है।
- अपशिष्ट जल की अधिकांश मात्रा का उपचार नहीं होना: भारत का लगभग 72% अपशिष्ट जल निकटवर्ती नदियों, झीलों आदि में छोड़ दिया जाता है।
- भारत में संभावनाएं: भारत में उपचारित प्रयुक्त जल क्षेत्रक के तहत जल की चक्रीय अर्थव्यवस्था के लिए एक मजबूत आधार मौजूद है, क्योंकि:
- 20% भूजल ब्लॉक गंभीर स्थिति में हैं या उनका अत्यधिक दोहन हो चुका है।
- 55% घरों में नालियां खुली हैं या वे हैं ही नहीं।
भारत में अपशिष्ट जल उपचार के समक्ष चुनौतियां
- सीवेज उपचार संयंत्रों (STPs) की कम परिचालन क्षमता: वर्तमान में स्थापित सीवेज उपचार क्षमता लगभग 31,000 मिलियन लीटर प्रतिदिन (MLD) है, लेकिन परिचालन क्षमता लगभग 26,000 MLD ही है।
- अन्य: इसमें सभी प्रकार के अपशिष्ट जल का आपस में मिश्रण, सीवेज नेटवर्क का अभाव, अपशिष्ट जल प्रबंधन को प्राथमिकता न देना आदि शामिल हैं।
इस रिपोर्ट में की गई मुख्य सिफारिशें
- गवर्नेंस में सुधार करना: नीतियों को जिला/ शहर स्तर पर उप-नियमों के जरिए समर्थन देना चाहिए तथा उनकी प्रभावी निगरानी की जानी चाहिए।
- उदाहरण के लिए- कर्नाटक में शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) ने अपशिष्ट जल पुन: उपयोग संसाधन केंद्र के साथ समन्वय सहित जिम्मेदारियों को निर्धारित किया है।
- जल के पुनः उपयोग में समानता और न्याय: यह विशेष रूप से अनियोजित और अनौपचारिक बस्तियों के वंचित निवासियों के लिए सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
- शहरी स्तर पर विकेन्द्रीकृत सीवेज उपचार संयंत्र (STPs): बैंगलुरु जिले को इसकी प्राकृतिक स्थलाकृति के आधार पर तीन ज़ोन्स में विभाजित किया गया है, ताकि विशेष क्षेत्रों की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके।
भारत में अपशिष्ट जल उपचार के लिए शुरू की गई नीतिगत पहलें:
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