भारत क्रिटिकल मिनरल्स (महत्वपूर्ण खनिजों) के लिए आयात पर निर्भर है। यह निर्भरता भारत की तकनीकी प्रगति में बड़ी बाधा है।
- हाल ही में, भारत के रक्षा मंत्री ने सचेत किया है कि चीन इन संसाधनों का सामरिक हथियारों के रूप में इस्तेमाल कर सकता है, क्योंकि उसका इन संसाधनों की आपूर्ति पर वर्चस्व है।
- चीन विश्व में दुर्लभ भू तत्वों (रेयर अर्थ एलिमेंट्स) के उत्पादन में 60% और क्रिटिकल मिनरल्स के उत्पादन में भी 60% का योगदान करता है। इसके अलावा, विश्व में इन खनिजों की 80% प्रोसेसिंग पर उसका नियंत्रण है।
- इसलिए, भारत क्रिटिकल मिनरल्स के स्तर पर रणनीतिक कमजोरियों को दूर करने और इन खनिजों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए ‘खनिज कूटनीति’ की दिशा में सक्रिय प्रयास शुरू कर रहा है।
खनिज कूटनीति क्या है?
- खनिज कूटनीति वास्तव में किसी देश द्वारा आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए क्रिटिकल मिनरल्स की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करना है। इसका उद्देश्य खनिज आपूर्ति में व्यवधान के खतरों और अपने भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धियों पर निर्भरता को कम करना है।
भारत की खनिज कूटनीति के स्तंभ
- संयुक्त उद्यम स्थापित करने पर जोर दिया जा रहा है:
- खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) की अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी: इसने ऑस्ट्रेलिया और अर्जेंटीना जैसे खनिज समृद्ध देशों के साथ समझौते किए हैं। साथ ही, इसने बोलीविया और चिली में रणनीतिक क्रिटिकल मिनरल्स परिसंपत्तियों के लिए लाइसेंस भी प्राप्त किए हैं।
- भारत-मध्य एशिया सहयोग: भारत और कजाकिस्तान ने टाइटेनियम स्लैग के उत्पादन के लिए एक संयुक्त उद्यम स्थापित किया है।
- भारत ने मध्य एशिया क्षेत्र के क्रिटिकल मिनरल्स संसाधनों का दोहन करने के लिए भारत-मध्य एशिया रेयर अर्थ फोरम के गठन का भी प्रस्ताव रखा है।
- सहकारी संबंध सुनिश्चित करना: भारत खनिज आपूर्ति सुरक्षा से संबंधित मिनीलेटरल और मल्टीलेटरल पहलों के साथ साझेदारी को बढ़ावा दे रहा है। क्रिटिकल मिनरल्स आपूर्ति श्रृंखला में सहयोग से संबंधित निम्नलिखित पहलें शुरू की गई हैं:
- क्वाड: यह ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका की भागीदारी है।
- भारत ‘इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रोस्पेरिटी (IPEF)’ में भी शामिल है।
- भारत ‘खनिज सुरक्षा भागीदारी (MSP)’ का सदस्य है।
- क्रिटिकल मिनरल से संबंधित G-7 पहलों में भी भारत सहयोग कर रहा है।
