इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट की एक स्टडी के अनुसार 38% वयस्क महिलाओं ने व्यक्तिगत रूप से प्रौद्योगिकी-समर्थित लैंगिक हिंसा का सामना किया है।
प्रौद्योगिकी-समर्थित लैंगिक-आधारित हिंसा (TFGBV) के बारे में
- TFGBV वास्तव में इंटरनेट या मोबाइल तकनीक के जरिए किसी अन्य जेंडर के या अलग सेक्सुअल पहचान वाले व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने वाले कृत्य हैं। इनमें हानिकारक लैंगिक मानदंडों को लागू करके नुकसान पहुंचाना भी शामिल है।
- TFGBV के कई हानिकारक रूप हो सकते हैं। जैसे- साइबर-स्टॉकिंग; ऑनलाइन ट्रोलिंग; अंतरंग तस्वीरों को बिना सहमति के साझा करना; नकली प्रोफाइल, वॉयरिज्म आदि के जरिए धोखाधड़ी करना तथा स्वयं को किसी अन्य व्यक्ति के रूप में पेश करना आदि।
TFGBV के मुख्य लक्षण
- सभी क्षेत्रों या देशों में स्वयं को गुमनाम रखते हुए सक्रिय रहना: इससे अपराधियों की पहचान करना और उन्हें अपराध करने से रोकना या जवाबदेह ठहराना बहुत मुश्किल हो जाता है।
- कम लागत वाली तकनीक का उपयोग करके तथा बिना अधिक कौशल, समय और प्रयास के साथ आसानी से अपराधों को अंजाम दिया जा सकता है।
- सजा से बचते हुए अपराधों को अंजाम दिया जा सकता है: दुर्व्यवहार करने वाले और अपराधी अक्सर किसी भी तरह की सजा या जवाबदेही से बच जाते हैं।
- दुर्व्यवहार का जारी रहना: डिजिटल कंटेंट तेजी से वायरल हो जाते हैं। इससे दुर्व्यवहार करना जारी रखा जाता है। इससे पीड़ितों को बार-बार मनोवैज्ञानिक आघातों का सामना करना पड़ता है।
TFGBV से निपटने के लिए आगे की राह
- ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट की सिफारिशों को लागू करके सेक्सुअल और लैंगिक हिंसा को अंजाम देने में प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग को हतोत्साहित किया जा सकता है।
- संयुक्त राष्ट्र “समिट ऑफ द फ्यूचर’ में भारत सहित कई देशों ने इस कॉम्पैक्ट को अपनाया था।
- विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों का विस्तार करना चाहिए।
- नुकसान पहुंचाने वाले कंटेंट को पोस्ट करने से रोकने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद लेनी चाहिए। साथ ही, यूजर-फ्रेंडली रिपोर्टिंग व्यवस्था विकसित करनी चाहिए। इसके लिए टेक कंपनियों के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए।
- पीड़ितों की मदद करने के लिए मजबूत समर्थन प्रणाली स्थापित करनी चाहिए। इससे पीड़ितों को परामर्श, कानूनी सहायता और पुनर्वास सहायता प्रदान की जा सकती है। टेकसखी एक ऐसी ही प्रणाली है।
