सुप्रीम कोर्ट ने पवित्र उपवनों के संरक्षण के लिए निर्देश/ सुझाव जारी किए | Current Affairs | Vision IAS
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सुप्रीम कोर्ट ने पवित्र उपवनों के संरक्षण के लिए निर्देश/ सुझाव जारी किए

Posted 19 Dec 2024

10 min read

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को टी.एन. गोदावर्मन निर्णय (1996) के अनुपालन में ओरण जैसे पवित्र उपवनों की पहचान करने के लिए निर्देश दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए मुख्य निर्देश/ सुझाव 

  • पवित्र उपवनों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अंतर्गत विशेष रूप से धारा 36(c) के तहत सामुदायिक रिजर्व घोषित करके संरक्षण प्रदान करना।
  • पिपलांत्री गांव जैसे मॉडल को देश के अन्य भागों में भी अपनाने और लागू करने के लिए सरकार के स्तर पर सक्रिय उपाय करना अनिवार्य है।
  • पिपलांत्री मॉडल राजस्थान के राजसमंद जिले के एक छोटे से गांव में विकसित किया गया है।
    • यह एक सामुदायिक संरक्षण प्रयास है, जिसमें हर लड़की के जन्म पर 111 पेड़ लगाए जाते हैं।
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) पवित्र अउपवनों के प्रशासन एवं प्रबंधन के लिए एक व्यापक नीति तैयार करेगा।
  • इसके तहत, MoEFCC को पवित्र उपवनों के राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के लिए एक योजना भी तैयार करनी होगी।
  • राजस्थान सरकार को अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के तहत पारंपरिक समुदायों को संरक्षक के रूप में मान्यता दे कर उन्हें सशक्त बनाना चाहिए।
  • MoEFCC और राजस्थान का वन विभाग एक समिति का गठन करेंगे, जो पवित्र उपवनों के मानचित्रण एवं पहचान संबंधी प्रक्रिया की निगरानी करेगी।

पवित्र उपवन (Sacred Grove) के बारे में 

  • पवित्र उपवन वन के भाग या वृक्षों के समूह होते हैं। ये उन स्थानीय समुदायों के लिए गहन  सांस्कृतिक या आध्यात्मिक महत्त्व रखते हैं, जो उन्हें संरक्षित और पोषित करते हैं। 
  • भारत में अनुमानतः 100,000 से अधिक पवित्र उपवन हैं। इस प्रकार, विश्व में सबसे अधिक पवित्र उपवन भारत में हैं।
    • इन्हें राजस्थान में देवरा, मालवन और उत्तराखंड में बुग्याल आदि अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
  • मेघालय के पवित्र उपवन “लिविंग रूट ब्रिज (जिंग कींग ज्री)” को यूनेस्को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दी गई है।
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  • टी.एन. गोदावर्मन निर्णय
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  • पिपलांत्री गांव
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