चीन ने तिब्बत के मेडोग क्षेत्र में विश्व के सबसे बड़े बांध और दुनिया की सबसे बड़ी अवसंरचना परियोजना के निर्माण को मंजूरी दी है।
- इस बांध की विद्युत उत्पादन क्षमता चीन के थ्री गॉर्जेस बांध से तीन गुना अधिक है। थ्री गॉर्जेस बांध वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा बांध है। यह मध्य चीन में स्थित है।
परियोजना के बारे में

- अवस्थिति: इस बांध का निर्माण यारलुंग त्संगपो (या ज़ंगबो) नदी के निचले अपवाह में हिमालय पर्वत श्रेणी में एक विशाल घाटी में किया जाना है। इस स्थान पर यह नदी यू-टर्न लेते हुए आगे अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है।
- गौरतलब है कि ब्रह्मपुत्र नदी को ही तिब्बती भाषा में यारलुंग त्संगपो (या ज़ंगबो) कहा जाता है।
- परियोजना का घोषित उद्देश्य: चीन के अनुसार इस परियोजना के उद्देश्य चीन के कार्बन न्यूट्रल लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करना, उद्योगों को बढ़ावा देना और तिब्बत में रोजगार के अवसर पैदा करना है।
बांध निर्माण से जुड़ी चिंताएं
- इंजीनियरिंग संबंधी चुनौतियां: तिब्बती पठार पर अक्सर भूकंप आते रहते हैं, क्योंकि यह टेक्टोनिक प्लेटों के ऊपर स्थित है।
- गौरतलब है कि तिब्बती पठार को “विश्व की छत” भी कहा जाता है।
- पर्यावरण पर प्रभाव: इस बांध के निर्माण से स्थानीय पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, इस नदी का आगे का जल प्रवाह भी प्रभावित होगा और इसके मार्ग में बदलाव हो सकते हैं। इससे कृषि और जैव विविधता को नुकसान पहुंचेगा।
- भू-राजनीतिक जोखिम: भारत और बांग्लादेश को डर है की चीन इस बांध के जरिए ब्रह्मपुत्र नदी के जल का अपने भू-राजनीतिक हितों को साधने के लिए इस्तेमाल कर सकता है।
- क्षेत्रीय संघर्षों के दौरान वह अतिरिक्त जल छोड़ सकता है। इससे भारत और बांग्लादेश में बाढ़ आ सकती है।
नदी जल से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए उपाय
- ज्ञातव्य है कि चीन और भारत ने दोनों देशों में बहने वाली यानी सीमा-पार नदियों के अपवाह से जुड़ी चिंताओं को हल करने के लिए 2006 में विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र (ELM) की स्थापना की थी।
- इस व्यवस्था के तहत चीन बाढ़ के मौसम के दौरान भारत को ब्रह्मपुत्र और सतलज नदियों पर हाइड्रोलॉजिकल यानी जल के प्रवाह से संबंधित डेटा प्रदान करता है।
- भारत भी अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी पर जलविद्युत बांध बना रहा है।