विश्व बैंक के तटस्थ विशेषज्ञ ने सिंधु जल संधि विवाद पर निर्णय लेने में स्वयं को 'सक्षम' बताया | Current Affairs | Vision IAS
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विश्व बैंक के तटस्थ विशेषज्ञ ने सिंधु जल संधि विवाद पर निर्णय लेने में स्वयं को 'सक्षम' बताया

Posted 24 Jan 2025

12 min read

सिंधु जल संधि (IWT), 1960 की शर्तों के तहत नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ ने घोषणा की है कि वह सिंधु जल संधि की नदियों पर निर्मित जलविद्युत परियोजनाओं के डिजाइन पर भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों पर निर्णय लेने के लिए "सक्षम" है। भारत ने विशेषज्ञ की इस घोषणा का "स्वागत" किया है।

  • सिंधु जल संधि (IWT) 1960: IWT पर 1960 में भारत और पाकिस्तान ने हस्ताक्षर किए थे। इस संधि पर विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता की गई थी। इसका उद्देश्य दोनों देशों के मध्य सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के जल के बंटवारे को निर्धारित करना है।

इस संधि के मुख्य प्रावधानों पर एक नजर:

  • जल का बंटवारा: पूर्वी नदियों (सतलुज, ब्यास और रावी) का समस्त जल भारत को आवंटित किया गया है। पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम और चिनाब) का जल ज्यादातर पाकिस्तान के लिए निर्धारित किया गया है।      
    • इसमें दोनों देशों को एक-दूसरे को आवंटित की गई नदियों के जल के कुछ विशेष या निर्धारित उपयोगों की अनुमति दी गई है।
    • इसलिए, भारत को इस संधि में दिए गए डिजाइन संबंधी नियमों सहित कुछ बाध्यताओं के अधीन पश्चिमी नदियों पर जलविद्युत ऊर्जा परियोजनाओं का निर्माण करने की अनुमति है।
  • मतभेदों और विवादों का निपटारा: इसमें तीन स्तरीय विवाद निपटान तंत्र का प्रावधान है:
    • स्थायी सिंधु आयोग: यह प्रत्यक्ष वार्ता के लिए मंच है। 
    • तटस्थ विशेषज्ञ: इसे तकनीकी असहमतियों को दूर करने के लिए विश्व बैंक द्वारा नियुक्त किया जाता है।
    • कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (COA): इसमें पहले के चरणों के माध्यम से हल नहीं किए जा सके विवादों का समाधान किया जाता है। यह इस विवाद निपटान तंत्र का उच्चतर स्तर है।    

वर्तमान विवाद

  • पृष्ठभूमि: वर्तमान विवाद भारत में झेलम और चिनाब की सहायक नदियों पर स्थित क्रमशः किशनगंगा (330 मेगावाट) तथा रतले (850 मेगावाट) जलविद्युत संयंत्रों के डिजाइन संबंधी विशेषताओं से संबंधित है।
  • विरोधी दृष्टिकोण: 2016 में पाकिस्तान ने विवाद को हल करने के लिए कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन द्वारा निर्णय का प्रस्ताव रखा था, जबकि भारत ने तटस्थ विशेषज्ञ द्वारा विवाद को हल करने की मांग की थी।

सिंधु जल संधि (IWT) का महत्त्व

  • राजनीतिक: यह संधि लगभग 65 वर्षों से कायम है, जो तृतीय-पक्ष की सफल मध्यस्थता और विवाद निवारण का उत्तम उदाहरण है।
  • आर्थिक: सहयोग और प्रौद्योगिकी के माध्यम से जल की उपलब्धता को अधिकतम करना तथा विकास को बढ़ावा देना।
  • पारिस्थितिकी: जलवायु परिवर्तन, जल की कमी जैसी उभरती चुनौतियों से निपटना।
  • Tags :
  • सिंधु जल संधि विवाद
  • सिंधु जल संधि
  • IWT
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