तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को पढ़ने और उसके शब्दों का अर्थ बताने वाले को 1 मिलियन डॉलर का पुरस्कार देने की घोषणा की।
सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि के बारे में
- प्रसार: यह लिपि लगभग 60 उत्खनन स्थलों से प्राप्त हुई है। वर्तमान में, इस लिपि के लगभग 3500 नमूने पत्थर पर उकेरी गई मुहरों, ढले हुए टेराकोटा और फेयॉन्स से बने ताबीजों, मृदभांडों के टुकड़ों आदि के रूप में बचे हुए हैं।
- लेखन शैली: सैंधव लिपि एक अज्ञात लेखन प्रणाली है। इसमें मिले अभिलेख आमतौर पर बहुत छोटे हैं, जिनमें औसतन पांच प्रतीक अक्षर हैं।
- इसे आमतौर पर दाएं से बाएं लिखा गया है। लंबे लेखों में कभी-कभी बौस्ट्रोफेडॉन शैली का प्रयोग किया गया है।
- बौस्ट्रोफेडॉन शैली में पहली पंक्ति दाएं से बाएं और अगली पंक्ति बाएं से दाएं लिखी जाती है।
- इसे आमतौर पर दाएं से बाएं लिखा गया है। लंबे लेखों में कभी-कभी बौस्ट्रोफेडॉन शैली का प्रयोग किया गया है।
- लिपि की संरचना: इसमें आंशिक रूप से चित्रात्मक प्रतीक अक्षरों का उपयोग किया जाता था। इसमें मानव और पशु रूपांकन, विशिष्ट 'यूनिकॉर्न' प्रतीक, " नियंत्रित यथार्थवाद" दिखाने वाले कलात्मक डिजाइन आदि शामिल हैं।
- लेखन माध्यम और विधियां: इसमें मुहरों, पट्टियों और तांबे की पट्टियों का उपयोग किया जाता था। इसके अलावा सामग्रियों में टेराकोटा, चीनी मिट्टी की वस्तुएं, शंख, हड्डी, हाथी दांत, पत्थर, धातु व कपड़े और लकड़ी जैसी समय के साथ क्षय होने वाली सामग्री शामिल थीं।
- लिपि को नक्काशी, उत्कीर्णन, छिलाई, जड़ाई, चित्रकारी, ढलाई और उभार के माध्यम से लिखा जाता था।
सैंधव लिपि को समझने का महत्त्व
- ऐतिहासिक: इससे सिंधु घाटी सभ्यता और बाद की वैदिक प्रथाओं के बीच संबंध तथा अन्य समकालीन सभ्यताओं के साथ उनके संबंधों को उजागर किया जा सकता है।
- भाषाई और नृजातीय संबंध: इससे सैंधव भाषाओं और द्रविड़ व इंडो-यूरोपीय परिवारों की समकालीन भाषाओं के बीच संबंध स्थापित करने में मदद मिल सकती है।
सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में
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