हाल ही में, “लौह की प्राचीनता: तमिलनाडु से हालिया रेडियोमेट्रिक तिथियां' शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। इस रिपोर्ट में भारत और विश्व में लौह युग से संबंधित मान्य धारणाओं को चुनौती दी गई है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:
- तमिलनाडु में लौह प्रौद्योगिकी का संबंध 3345 ईसा पूर्व (BCE) से है।
- शिवगलई से प्राप्त चारकोल और मृदभांड के टुकड़े 2953 ईसा पूर्व से 3345 ईसा पूर्व के हैं। यह विश्व में लौह प्रौद्योगिकी का अब तक का सबसे पुराना प्रमाण है।
- किलनामंडी में पाया गया 1692 ईसा पूर्व का पाषाण ताबूत (सार्कोफेगस), तमिलनाडु में अपनी तरह का सबसे पुराना शवाधान है।
- मईलाडुमपरई, किलनामंडी, पेरुंगालुर जैसे स्थलों पर लोहा गलाने की भट्टियों की खोज की गई है। ये खोज इस क्षेत्र की तकनीकी प्रगति और मजबूत लौह उपकरण व हथियार बनाने की दक्षता को दर्शाती है।
नई खोज का महत्त्व:
- वैश्विक लौह युग के कालक्रम को चुनौती: लौह युग को परंपरागत रूप से अनातोलिया (तुर्की) के हित्ती साम्राज्य से जोड़ा जाता है। माना जाता है कि अनातोलिया में लौह प्रौद्योगिकी का आरंभ लगभग 1300 ईसा पूर्व में हुआ था।
- सांस्कृतिक विकास के रैखिक मॉडल को चुनौती: पारंपरिक धारणा के अनुसार ताम्र के बाद लौह का प्रचलन आरंभ हुआ था। ऐसा इस कारण, क्योंकि लौह धातु के लिए अलग तरह के कौशल और उन्नत स्तर की धातुकर्म विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
- भारत में लौह युग और ताम्र-कांस्य युग संभवतः समकालीन थे: वहीं विश्व में ताम्र-कांस्य युग के बाद लौह युग शुरू हुआ था।
- पहले माना जाता था कि भारत में लौह युग 1500 से 2000 ईसा पूर्व के बीच शुरू हुआ था। यह सिंधु घाटी सभ्यता के बाद का काल है।
- नई खोज और स्टडी वी. गॉर्डन चाइल्ड और मॉर्टिमर व्हीलर जैसे विद्वानों की धारणाओं को चुनौती देती है। इन विद्वानों के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में लौह प्रौद्योगिकी का प्रसार भारत के एकल पश्चिमी केंद्र से हुआ था।
अध्ययन में उपयोग की गई डेटिंग तकनीक
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