राज्य दो-तिहाई सार्वजनिक व्यय और एक-तिहाई राजस्व का प्रबंधन करते हैं। साथ ही, वे विकास और अवसंरचना में प्रमुख भूमिकाएं भी निभाते हैं। इससे उनका राजकोषीय स्वास्थ्य राष्ट्रीय प्रगति के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है।
‘राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक (FHI) 2025’ के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- शीर्ष प्रदर्शन करने वाले राज्य: ओडिशा ने राजकोषीय स्वास्थ्य में उत्कृष्टता हासिल की है। साथ ही, ऋण सूचकांक और ऋण स्थिरता रैंकिंग में सर्वोच्च सूचकांक स्कोर प्राप्त किया है।
- एस्पिरेशनल (आकांक्षी) राज्य: इन राज्यों को बड़ी राजकोषीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे- व्यय की निम्न गुणवत्ता, ऋण स्थिरता और राजस्व जुटाने से संबंधित मुद्दे।
- राजस्व संग्रहण: गोवा, तेलंगाना और ओडिशा राजस्व संग्रहण में अग्रणी हैं।
- पूंजीगत व्यय: एचीवर (सफल) और फ्रंट रनर राज्य अपने विकास संबंधी व्यय का लगभग 27% पूंजीगत व्यय के लिए आवंटित करते हैं। इसके विपरीत, परफ़ॉर्मर (निष्पादक) और एस्पिरेशनल राज्य केवल लगभग 10% आवंटित करते हैं।
- ऋण स्थिरता: पश्चिम बंगाल और पंजाब जैसे राज्यों पर ऋण का बोझ बढ़ रहा है। इससे ऋण स्थिरता को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं।
राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक (FHI) 2025 के बारे में
- उद्देश्य: संतुलित क्षेत्रीय विकास और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए राज्यों के राजकोषीय स्वास्थ्य का मूल्यांकन करना।
- आकलन: 18 प्रमुख राज्यों का राजकोषीय स्वास्थ्य।
- पांच प्रमुख उप-सूचकांकों पर आधारित: व्यय की गुणवत्ता, राजस्व संग्रहण, राजकोषीय विवेकशीलता, ऋण सूचकांक और ऋण स्थिरता।
- राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक का महत्त्व:
- राजकोषीय स्वास्थ्य ढांचा: यह राजकोषीय समेकन, पारदर्शिता और संसाधन प्रबंधन में सहायता करता है।
- राष्ट्रीय विज़न को समर्थन: सूचकांक से मिलने वाले परिणाम भारत के "विकसित भारत@2047" को प्राप्त करने के व्यापक विज़न के अनुरूप हैं, जहां राज्य स्तर पर वित्तीय अनुशासन देश के आर्थिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
