यह अध्ययन नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में तीन दशकों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। साथ ही, स्थलीय और समुद्री पारिस्थितिकी-तंत्रों के प्राणियों, पादपों और कवकों की 600 से अधिक प्रजातियों की जांच भी की गई है।
- आनुवंशिक विविधता का अर्थ एक ही प्रजाति के भीतर मौजूद अलग-अलग आनुवंशिक लक्षणों (गुणों) की विविधता से है। यह विविधता किसी आबादी के लिए बदलते पर्यावरण के प्रति अनुकूलन हेतु महत्वपूर्ण होती है। यह प्रजातियों की आबादी के दीर्घकालिक अस्तित्व और पारिस्थितिकी-तंत्र में स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
इस अध्ययन के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:

- आनुवंशिक क्षति का स्तर: अध्ययन की गई आबादी के 2/3 हिस्से में आनुवंशिक विविधता में गिरावट देखी गई। साथ ही, आधे से भी कम हिस्से को संरक्षण के तहत शामिल किया गया है।
- प्रभावित दायरा: आनुवंशिक क्षति और किसी प्रजाति की IUCN स्थिति के मध्य कोई सीधा संबंध नहीं है। साथ ही, यह केवल दुर्लभ एवं संकटग्रस्त प्रजातियों तक ही सीमित नहीं है।
- आनुवंशिक विविधता की हानि विशेष रूप से पक्षियों और स्तनधारियों में अधिक देखी जा रही है।
- संरक्षण संबंधी उपाय: पर्यावास का पुनरुद्धार, रोग नियंत्रण और कैप्टिव ब्रीडिंग से आनुवंशिक क्षति की भरपाई करने में मदद मिल सकती है।
जैविक विविधता के संरक्षण हेतु शुरू की गई अलग-अलग पहलें
- जैविक विविधता पर कन्वेंशन का कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क: इसमें सभी प्रजातियों की आनुवंशिक विविधता के संरक्षण का लक्ष्य शामिल है।
- स्व-स्थाने संरक्षण: इसमें संरक्षित क्षेत्र, राष्ट्रीय उद्यान जैसे प्रयास शामिल हैं। जैसे प्रोजेक्ट टाइगर।
- बाह्य-स्थाने संरक्षण: इसमें प्राणि उद्यान, जीन बैंक आदि शामिल हैं।
- तकनीकी प्रगति: पर्यावरणीय DNA (eDNA), जीनोम अनुक्रमण, DNA बारकोडिंग जैसे प्रयास शामिल हैं।
निष्कर्ष
आनुवंशिक विविधता का संरक्षण जैव विविधता को बनाए रखने और पर्यावरणीय परिवर्तनों से निपटने के लिए आवश्यक है। यह पारिस्थितिकी-तंत्र की स्थिरता को बनाए रखता है और प्रकृति से मिलने वाले लाभों को सुनिश्चित करता है।