सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों से पहले राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार (Freebies) देने के वादे पर कहा कि हम कुछ लोगों को परजीवियों का एक वर्ग बना रहे हैं। न्यायालय के अनुसार इस तरह के मुफ्त उपहार कुछ लोगों को रोजगार खोजने, मुख्यधारा में शामिल होने और राष्ट्रीय विकास में योगदान देने के अवसर से वंचित कर देती हैं।
फ्रीबीज (मुफ्त उपहार) के बारे में
- परिभाषा: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अनुसार फ्रीबीज “एक ऐसी सार्वजनिक कल्याणकारी योजना है, जिसके तहत मुफ्त में वस्तुएं या सेवाएं प्रदान की जाती हैं।”
- हालांकि, भारत के चुनाव आयोग ने फ्रीबीज को परिभाषित नहीं किया है।
- फ्रीबीज के उदाहरण: फ्री-बिजली, फ्री जलापूर्ति, पब्लिक ट्रांसपोर्ट में बिना किराए की यात्रा आदि।

फ्रीबीज से जुड़ी चिंताएं
- राजकोषीय बोझ: मुफ्त में अधिक सुविधाएं देने से राज्य की वित्तीय स्थिति पर दबाव बढ़ जाता है। इससे राजकोषीय घाटा बढ़ता है।
- उदाहरण के लिए- मुफ्त सुविधाओं पर अत्यधिक खर्च के कारण पंजाब को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है।
- विकास कार्यों पर कम खर्च होना: राजस्व को अवसंरचना विकास और रोजगार सृजन में निवेश करने की बजाय अल्पकालिक राजनीतिक लाभ के लिए खर्च किया जाता है।
- पर्यावरण को नुकसान: नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG) की एक रिपोर्ट में बताया गया कि पंजाब में मुफ्त बिजली देने से भूजल स्तर में बड़े पैमाने पर गिरावट दर्ज की गई है।
- संस्थानों को कमजोर बनाना: एन.के. सिंह के अनुसार ऋण माफी और फ्री-बिजली जैसी नीतियां बैंकों एवं विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स/ DISCOMs) को नुकसान पहुंचाती हैं।
आगे की राह
- कल्याणकारी योजनाओं के बीच संतुलन: स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, खाद्य सुरक्षा जैसी आवश्यक कल्याणकारी योजनाओं तथा गैर-जरूरी फ्रीबीज में अंतर किया जाना चाहिए।
- संस्थागत और विधायी सुधार: फ्रीबीज को परिभाषित करने और नियंत्रित करने के लिए संसद में विस्तार से बहस की जानी चाहिए।
- राजनीतिक और चुनावी जवाबदेही: चुनावी घोषणा-पत्रों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए भारत के चुनाव आयोग (ECI) की भूमिका बढ़ाई जानी चाहिए।