‘री पॉलिसी स्ट्रेटेजी फॉर ग्रांट ऑफ बेल’ वाद में, सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की सजा का पूर्ण/ आंशिक हिस्सा माफ करने की उपयुक्त सरकार की शक्ति के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए।
- CrPC की धारा 432 और BNSS (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता) की धारा 473 यथोचित सरकार की परिहार शक्तियों से संबंधित है।
प्रमुख दिशा-निर्देश:
- पात्र दोषियों पर विचार करने की बाध्यता: जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने परिहार नीति अपनाई है, उन्हें दोषियों द्वारा आवेदन न करने की स्थिति में भी परिहार के लिए पात्र मामलों पर स्वतः विचार करना अनिवार्य होगा।
- जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अभी तक परिहार नीति नहीं अपनाई है, उन्हें दो महीनों के भीतर एक स्पष्ट और व्यवस्थित नीति तैयार करनी होगी।
- परिहार के लिए शर्तें: परिहार नीति अपराध की प्रकृति और लोक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उचित, विशिष्ट व व्यवहार्य होनी चाहिए।
- परिहार का निरसन: परिहार देने से पहले रिकॉर्ड किए गए कारणों का उल्लेख करना जरूरी होगा। साथ ही, दोषी को अपने पक्ष में जवाब देने का अवसर प्रदान करना अनिवार्य है।
परिहार के बारे में
- परिभाषा: परिहार का अर्थ है दंड की प्रकृति को बदले बिना किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति के दंड को कम करना। उदाहरण के लिए- दो वर्ष के कठोर कारावास को एक वर्ष के कठोर कारावास में बदलना।
- संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति को किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा (Pardon), स्थगन (Reprieve), विराम (Respite) या परिहार (Remission) और प्रविलंबन या लघुकरण की शक्ति प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 161 राज्य सूची में शामिल विषयों से जुड़े कानूनों के तहत अपराधों के लिए राज्यपाल को समान शक्तियां प्रदान करता है।
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