ये अभिलेख 1129 ई., 1130 ई., और 1132 ई. के हैं, जब कल्याणी के चालुक्य वंश के सम्राट सोमेश्वर-III भूलोकमल्लदेव का शासन था।
- प्रथम शिलालेख में बिज्जेश्वर मंदिर के निर्माण और स्थानीय ग्राम प्रधान द्वारा दिए गए दान का विवरण मिलता है।
- दूसरे और तीसरे अभिलेख में मंदिर को दिए गए दान का उल्लेख है।
कल्याणी के चालुक्य (या उत्तरवर्ती/ पश्चिमी चालुक्य) राजवंश के बारे में
- उत्तरवर्ती चालुक्यों को बादामी के चालुक्यों का वंशज माना जाता है। तैल द्वितीय, प्रथम शासक था। उसने 992 ई. में राजराजा चोल को हराया था।
- इन शासकों ने 973-1180 ई. तक दक्कन क्षेत्र पर शासन किया था। इनकी राजधानी कल्याणी (वर्तमान में बीदर, कर्नाटक) थी।
कला और संस्कृति
- स्थापत्यकला:
- प्रमुख मंदिर: लक्कुंडी में काशी विश्वेश्वर मंदिर, कुरुवत्ति में मल्लिकार्जुन मंदिर, बगली में कल्लेश्वर मंदिर और इटागी में महादेव मंदिर।
- सीढ़ीदार कुएं: कल्याणी के चालुक्य अलंकृत सीढ़ीदार कुओं (पुष्करणी) के लिए भी जाने जाते हैं। ये कुंए आनुष्ठानिक स्नान स्थल के रूप में उपयोग किए जाते थे। उदाहरण के लिए- लक्कुंडी में मणिकेश्वर मंदिर।
- साहित्य:
- इस अवधि के दौरान संस्कृत और कन्नड़ साहित्य का विकास हुआ।
- इस अवधि के दौरान कन्नड़ के साहित्यिक दिग्गजों में पंप, रन्न, दुर्गसिंह, नागवर्मा आदि शामिल थे।
- धर्म:
- इस दौरान शैववाद के विभिन्न संप्रदाय प्रचलित थे, जैसे पाशुपत, लकुलीश और कालमुख।
- इस काल में बसवन्ना के नेतृत्व में एक नए सामाजिक और धार्मिक आंदोलन का उदय भी हुआ था।