नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, 21वीं सदी की शुरुआत से लेकर अब तक ग्लेशियर के पिघलने से वैश्विक स्तर पर समुद्री जल स्तर में लगभग 2 से.मी. की वृद्धि हुई है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र
- बड़े पैमाने पर हिम का पिघलना: वर्ष 2000 से 2023 तक की अवधि में, हर साल ग्लेशियरों से लगभग 270 बिलियन टन हिम पिघल कर नष्ट हुई।
- सर्वाधिक ग्लेशियर पिघलने वाले क्षेत्र: अलास्का, कनाडाई आर्कटिक क्षेत्र, ग्रीनलैंड के किनारे स्थित ग्लेशियर, सदर्न एंडीज पर्वतमाला, आदि।
समुद्री जल स्तर में वृद्धि के बारे में
- परिभाषा: जब किसी विशेष स्थान पर भूमि की तुलना में समुद्री जल के सतह की ऊंचाई बढ़ जाती है तो उसे समुद्री जल स्तर में वृद्धि कहा जाता है।
- समुद्री जल स्तर में वृद्धि के दो प्रमुख कारण हैं:
- ग्लेशियर और हिम की चादरों का पिघलना: ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर और हिम की चादरें पिघलने लगती हैं।
- तापमान वृद्धि: समुद्र के तापमान में वृद्धि होने पर समुद्री जल फैलता है, जिससे जल स्तर में वृद्धि होती है।
समुद्री जल स्तर में वृद्धि के परिणाम
- तड़ित झंझा और प्राकृतिक आपदाएं: समुद्री जल स्तर के बढ़ने से तड़ित झंझा एवं तटीय क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है।
- मानव बस्तियां: विश्व की 15% जनसंख्या समुद्री क्षेत्र के 10 कि.मी. के दायरे में रहती है, जिससे वे अधिक असुरक्षित हो जाते हैं।
- ताजे जल का प्रदूषण: समुद्रों का बढ़ता जल स्तर ताजे जल के स्रोतों को प्रदूषित करता है, जिससे कृषि और पेयजल की आपूर्ति प्रभावित होती है।
- तटीय बाढ़: वर्ष 2100 तक, समुद्री जल के बढ़ते स्तर से 630 मिलियन लोग हर साल बाढ़ के खतरे का सामना कर सकते हैं।
भारत में समुद्री जल स्तर में वृद्धि के खतरे
|