“ग्लोबल जियोपॉलिटिकल सिचुएशन” शीर्षक वाले G20 सत्र में अपनी टिप्पणी के दौरान, विदेश मंत्री ने निष्क्रिय बहुपक्षवाद (Multilateralism) की आलोचना की तथा वैश्विक चुनौतियों के समाधान के लिए समावेशी एवं पारदर्शी सहयोग हेतु बहुपक्षीयता की आवश्यकता पर जोर दिया।
बहुपक्षीयता के बारे में
- परिभाषा: बहुपक्षीयता गवर्नेंस की एक ऐसी रणनीति है, जिसमें किसी बड़े बहुपक्षीय फ्रेमवर्क के भीतर कुछ देश विशिष्ट मुद्दों पर समझौता करने के लिए मिलकर कार्य करते हैं।
- बहुपक्षीयता बनाम बहुपक्षवाद (Plurilateralism vs. Multilateralism):
- बहुपक्षवाद, बहुपक्षीयता से भिन्न होता है, क्योंकि इसमें संधियां या समझौते पूरे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय या उसके अधिकांश सदस्यों (जैसे कि WTO, संयुक्त राष्ट्र संधियां) के बीच किए जाते हैं।
- इसके विपरीत, बहुपक्षीयता अधिक लचीली और केंद्रित व्यवस्था है। यह बहुपक्षवाद की व्यापक लेकिन अक्सर धीमी और जटिल सर्वसम्मति वाली प्रक्रिया से काफी भिन्न होती है।
बहुपक्षीयता में वृद्धि के कारण
- तेजी से निर्णय लेना: मल्टीलेटरल वार्ता में बहुत अधिक समय लगता है और वार्ता में अक्सर देरी होती है, जबकि बहुपक्षीयता इन सबसे बचाता है। उदाहरण के लिए- WTO के अपीलीय निकाय के पंगु हो जाने की स्थिति में समस्या का समाधान करने के लिए मल्टी-पार्टी इंटरिम अपील अरेंजमेंट (MPIA) का गठन किया गया है।
- विशिष्ट मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना: बहुपक्षीयता प्रमुख क्षेत्रों में टार्गेटेड सहयोग को संभव बनाता है। उदाहरण के लिए- मिनरल सिक्योरिटी पार्टनरशिप (MSP), जो महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति श्रृंखला को सुरक्षित करने और चीन पर निर्भरता को कम करने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में संचालित एक पहल है।
- मल्टीलेटरल गतिरोधों को दरकिनार करना: बहुपक्षीयता वैश्विक संस्थानों में उत्पन्न होने वाले गतिरोधों को दूर करने में मदद करती है। उदाहरण के लिए- WTO दोहा दौर की विफलता के कारण कई देशों ने आपस में क्षेत्रीय व्यापार समझौते किए।
- रणनीतिक गठबंधन और भू-राजनीतिक बदलाव: मौजूदा दौर में ज्यादातर देश व्यापार, प्रौद्योगिकी और सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए प्लुरिलेटरल समझौतों के माध्यम से रणनीतिक गठबंधन बना रहे हैं, उदाहरण के लिए- ऑकस (AUKUS)।
भारत का बहुपक्षीयता की ओर झुकाव
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