एक लेक्चर देते हुए उन्होंने संविधान के होने और संविधानवाद का पालन करने के बीच अंतर करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
संविधानवाद क्या है?
- संविधानवाद की अवधारणा के अनुसार, सरकार की शक्तियों को कानूनी रूप से सीमित किया जा सकता है और किया जाना चाहिए। इसके अलावा, संविधानवाद के अनुसार, सरकार की शक्ति या वैधता कानूनी सीमाओं का पालन करने पर निर्भर करती है।
- न्यायपालिका ने संविधान की प्रगतिशील व्याख्या कर भारत में आधुनिक संविधानवाद को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जैसे कि नवतेज सिंह जौहर एवं अन्य बनाम भारत सरकार वाद (2018) में LGBT समुदाय के अधिकारों को मान्यता देना।
भारत में संविधानवाद
- संविधान की सर्वोच्चता: भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है और सभी कानून तथा नीतियां इसके अनुरूप होने चाहिए (अनुच्छेद 13)।
- मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक सिद्धांत: व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए सरकार का मार्गदर्शन।
- आधारभूत ढांचे का सिद्धांत {केशवानंद भारती वाद (1973)}: आधारभूत ढांचे का सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि संविधान के मूल सिद्धांतों को संविधान में संशोधन कर नहीं बदला जा सकता है।
संविधानवाद के संबंध में उभरते ट्रेंड्स
- संवैधानिक कानूनों का ‘अंतर्राष्ट्रीयकरण’: संवैधानिक कार्यों का राष्ट्रीय से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थानांतरण हो रहा है। जैसे- ‘मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन (MFN)’ संबंधी क्लॉज़ के माध्यम से मार्केट एक्सेस अधिकार और समान अवसर सुनिश्चित किए जा रहे हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का ‘संवैधानिकीकरण’: अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों जैसे नॉन स्टेट एक्टर्स का महत्त्व बढ़ा है। इससे अंतर्राष्ट्रीय कानून के विषय में राज्य की भूमिका को चुनौती मिल रही है।
व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान
| लोकप्रिय संप्रभुता
| शक्तियों का पृथक्करण
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संविधानवाद की प्रमुख विशेषताएं | ||
स्वतंत्र न्यायपालिका
| जिम्मेदार और जवाबदेह सरकार
| विधि का शासन
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