केंद्रीय गृह मंत्री ने आश्वासन दिया है कि परिसीमन के परिणामस्वरूप लोक सभा सीटों में होने वाली किसी भी वृद्धि में दक्षिणी राज्यों को उनका उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा। साथ ही, उन्होंने कहा कि आनुपातिक आधार पर दक्षिणी राज्यों की एक भी लोक सभा सीट कम नहीं की जाएगी।
परिसीमन को लेकर दक्षिणी राज्यों की चिंताएं
- जनसंख्या नियंत्रण: जनसंख्या के आधार पर परिसीमन से लोक सभा में दक्षिणी राज्यों की सीटों की संख्या कम हो सकती है, जो उनके द्वारा जनसंख्या नियंत्रण हेतु प्रभावी प्रयासों के लिए एक दंड जैसा हो सकता है।
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व में असंतुलन: जनसंख्या के आधार पर सीटों के पुनर्वितरण से संसद में दक्षिणी राज्यों का प्रभाव और उनका राजनीतिक महत्त्व कम हो सकता है।
- संघवाद और क्षेत्रीय स्वायत्तता पर असर: प्रतिनिधित्व में बड़े बदलाव से संघीय व्यवस्था कमजोर हो सकती है, क्योंकि इससे राष्ट्रीय नीतियां मुख्य रूप से उत्तरी राज्यों के हितों के अनुसार बनाई जा सकती हैं।
परिसीमन के बारे में
- यह लोक सभा और विधान सभाओं के लिए प्रत्येक राज्य में सीटों की संख्या और निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करने की प्रक्रिया है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 82 और 170 में प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों (संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों और विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों) में पुनः समायोजित करने का प्रावधान किया गया है। इसे ऐसे प्राधिकार और ऐसी रीति से किया जाएगा, जैसा संसद विधि द्वारा निर्धारित करे।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 में लोक सभा और राज्य विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या पुनर्निर्धारित करने का प्रावधान है।
- 84वां संविधान संशोधन, 2001: इसके द्वारा 2026 के बाद होने वाली पहली जनगणना तक सीटों में वृद्धि पर रोक लगा दी गई थी।
- परिसीमन आयोग: अब तक परिसीमन आयोग अधिनियम 1952, 1962, 1972 और 2002 के तहत कुल चार बार परिसीमन आयोग का गठन किया गया है।
- परिसीमन आयोग के आदेश:
- आयोग के आदेश कानून के समान होते हैं और उन्हें किसी भी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
- परिसीमन संबंधी निर्णय भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक तय तिथि से प्रभावी होते हैं।