भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) यह कार्य ओपन मार्केट ऑपरेशन्स के तहत निम्नलिखित दो पहलों के जरिए पूरा करेगा:
- सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) की खरीद, और
- अमेरिकी डॉलर/ भारतीय रुपया (USD/INR) बाय/ सेल स्वैप नीलामी।
ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) के बारे में:
- इसके तहत, RBI खुले बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) की खरीद या बिक्री करता है। इससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति और ब्याज दर बढ़ती या घटती है।
- खुले बाजार में G-Secs की खरीद हाई पावर्ड मनी (H) की आपूर्ति बढ़ाती है, जबकि उनकी बिक्री से हाई पावर्ड मनी की समान मात्रा में आपूर्ति कम हो जाती है।
- हाई पावर्ड मनी वास्तव में वाणिज्यिक बैंकों के पास मुद्रा भंडार और जनता के पास मुद्रा (नोट और सिक्के) का योग है।
अमेरिकी डॉलर-भारतीय रुपया (USD/INR) स्वैप नीलामी के बारे में:
- इसके तहत, कोई बैंक RBI को अमेरिकी डॉलर बेचता है और स्वैप अवधि की समाप्ति पर समान मात्रा में डॉलर वापस खरीदने के लिए सहमत होता है।
- यह कार्य नीलामी के माध्यम से किया जाता है। इसमें प्रत्येक बैंक अपनी स्वैप दर (फॉरवर्ड प्रीमियम या डिस्काउंट) का उल्लेख करता है, और सबसे कम दर की बोली लगाने वाले बैंक को प्राथमिकता दी जाती है।
बैंकों में लिक्विडिटी बढ़ाने की आवश्यकता क्यों है?
- बैंकिंग प्रणाली में नवंबर 2024 से ही लिक्विडिटी की कमी पर चिंता जताई जा रही है। लिक्विडिटी की कमी की निम्नलिखित वजहें हैं:
- करों का भुगतान करने के लिए बैंकों से धनराशि निकलना;
- बड़े विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा भारतीय इक्विटी में बिकवाली,
- विदेशी मुद्रा बाजार में RBI का हस्तक्षेप, आदि।
- बैंकों में लिक्विडिटी बढ़ने के कई फायदे हैं। इनमें कुछ मुख्य फायदे निम्नलिखित हैं:
- ब्याज दरों में कटौती का लाभ आम कर्जदारों को भी प्राप्त होता है,
- RBI की मौद्रिक नीति का सही से क्रियान्वयन हो पाता है,
- आर्थिक संवृद्धि को गति मिलती है आदि।
अर्थव्यवस्था में लिक्विडिटी बढ़ाने के अन्य उपाय
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