सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि न्यायाधीशों को नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए, भले ही की गई टिप्पणियां उन्हें पसंद न हों | Current Affairs | Vision IAS
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि न्यायाधीशों को नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए, भले ही की गई टिप्पणियां उन्हें पसंद न हों

Posted 29 Mar 2025

12 min read

इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात राज्य मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा’ के महत्त्व को रेखांकित किया। सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों को यह याद दिलाया कि अलोकप्रिय राय व्यक्त करने वाले व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करना उनका कर्तव्य है।

  • सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय राज्य सभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज एक प्राथमिकी (FIR) के मामले में आया है। सांसद पर यह आरोप लगाया गया था कि उनकी टिप्पणियों से समुदायों के बीच शत्रुता फैली है। यह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A के तहत दंडनीय अपराध है। 
  • हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि धारा 153A के तहत किसी व्यक्ति को दोषी सिद्ध करने के लिए समुदायों के बीच इरादतन घृणा फैलाने का आरोप साबित करना आवश्यक है।
    • भारतीय न्याय संहिता (2023) की धारा 196 उन कृत्यों या अभिव्यक्तियों को दंडित करती है, जो धर्म, नस्ल, भाषा या क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग समूहों के बीच घृणा या वैमनस्यता को भड़काते हैं। इस धारा का उद्देश्य समाज में शांति बनाए रखना है।

संविधान में ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ से संबंधित प्रावधान

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत सभी नागरिकों को “वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता “का मूल अधिकार प्राप्त है। इस मूल अधिकार में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • स्वतंत्र रूप से अपनी राय और विचारों को व्यक्त करने का अधिकार; 
    • सूचना प्राप्त करने और साझा करने का अधिकार;
    • प्रेस की स्वतंत्रता;
    • सरकार और लोक प्रसिद्ध व्यक्तियों की आलोचना करने का अधिकार आदि। 
  • हालांकि, अनुच्छेद 19(2) के तहत उपर्युक्त स्वतंत्रता पर निम्नलिखित मामलों में उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं: 
    • भारत की संप्रभुता और अखंडता; 
    • देश की सुरक्षा; 
    • अन्य देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध; 
    • लोक व्यवस्था;
    • शिष्टाचार या सदाचार;
    • न्यायालय की अवमानना, मानहानि; 
    • अपराध के लिए उकसाने से संबंधित मामले आदि। 

महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय

  • के.ए. अब्बास बनाम भारत संघ (1970): किसी फिल्म के प्रभाव का मूल्यांकन सामान्य दर्शकों पर उसके समग्र प्रभाव के आधार पर किया जाना चाहिए।
  • श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015): वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की बुनियाद है।
  • मंजर सईद खान एवं पैट्रीशिया मुखीम बनाम मेघालय राज्य (2021): IPC की धारा 153A के तहत अपराध साबित करने के लिए "मेंस रिया” (Mens Rea) यानी अपराध की मंशा का होना आवश्यक है।
  • Tags :
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
  • अनुच्छेद 19(1)(a)
  • भारतीय दंड संहिता
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