भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की स्थापना 1935 में की गई थी। उसी वर्ष RBI ने बैंक दर और नकद आरक्षित अनुपात तय करने के लिए अपनी पहली मौद्रिक नीति की घोषणा की थी।
मौद्रिक नीति के बारे में
- मौद्रिक नीति वह प्रक्रिया है जिसके जरिए केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति को नियंत्रित करता है।
- उद्देश्य: मूल्य स्थिरता, आर्थिक संवृद्धि, वित्तीय स्थिरता, आदि।
- मौद्रिक नीति निर्धारण के साधन
- मात्रात्मक नियंत्रण के साधन: रेपो दर, रिवर्स रेपो दर, वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) और सीमांत स्थायी सुविधा (MSF)।
- गुणात्मक नियंत्रण के साधन: नैतिक दबाव, प्रत्यक्ष कार्रवाई, आदि।
- मौद्रिक नीति के प्रकार:
- संकुचनकारी मौद्रिक नीति (या सख्त मौद्रिक नीति): इसमें ब्याज दरों में वृद्धि की जाती है और मुद्रा की आपूर्ति को सीमित किया जाता है ताकि मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सके।
- विस्तारवादी मौद्रिक नीति: इसमें ब्याज दरों में कमी की जाती है और मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि की जाती है। इससे उधार लेने और उपभोक्ता खर्च में बढ़ोतरी होती है।
भारत में वर्तमान मौद्रिक नीति फ्रेमवर्क
- 2016 से पहले: RBI के गवर्नर ही मौद्रिक नीति का निर्धारण करते थे।
- 2016 के बाद: वित्त अधिनियम, 2016 के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 में संशोधन किया गया और मौद्रिक नीति समिति का गठन किया गया।
- इसके बाद, फ्लेक्सिबल मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT) को औपचारिक रूप से अपनाया गया।
मौद्रिक नीति समिति (MPC) के बारे में
|