सुप्रीम कोर्ट द्वारा पर्यावरणीय विषयों का संवैधानिकीकरण वास्तव में पर्यावरण-केंद्रित (Eco-centric) अप्रोच की ओर एक महत्वपूर्ण कदम रहा है। यहां संवैधानिकीकरण का अर्थ है पर्यावरण संबंधी मुद्दों को संवैधानिक सिद्धांतों के दृष्टिकोण से विश्लेषित करना।
- इस अप्रोच को अपनाने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अलग-अलग अनुच्छेदों के प्रावधानों का उपयोग किया है। इनमें से कुछ अनुच्छेद निम्नलिखित हैं:
- अनुच्छेद 32: संवैधानिक उपचारों का अधिकार,
- अनुच्छेद 142: पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक आदेश देने का अधिकार, आदि।
पर्यावरण-केंद्रित अप्रोच के बारे में
- यह अप्रोच संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र और उसके सभी घटकों की भलाई को प्राथमिकता देती है। पर्यावरण-केंद्रित अप्रोच में प्रकृति को केवल मानव उपयोग के नज़रिए से नहीं, बल्कि स्वयं प्रकृति के अस्तित्व और हित के लिए भी मूल्यवान माना जाता है।
- यह अप्रोच सतत विकास का समर्थन करती है।
- इस अप्रोच को अर्ने नेस के ‘डीप इकोलॉजी मूवमेंट’ के तहत भी मान्यता मिली थी।
- यह आंदोलन इस विचार पर आधारित था कि मानव को प्रकृति के प्रति अपने दृष्टिकोण में बुनियादी बदलाव लाना चाहिए, ताकि प्रकृति को केवल मानव उपभोग की वस्तु न मानकर उसमें निहित प्राकृतिक मूल्यों का भी सम्मान किया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट के कुछ प्रमुख निर्णय जिनमें पर्यावरण-केंद्रित अप्रोच अपनाया गया
- टी.एन. गोदावर्मन तिरुमुलपाद बनाम भारत संघ एवं अन्य (1996) वाद: इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने “वन” की परिभाषा का विस्तार किया। साथ ही, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सभी हरित क्षेत्रों को संरक्षित किया जाना चाहिए, चाहे वे किसी भी प्रकार के वन हों, किसी भी श्रेणी में आते हों, या उनका स्वामित्व किसी के पास भी हो।
- सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल लॉ, WWF-1 बनाम भारत संघ एवं अन्य (1998) वाद: इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को संरक्षण उपायों को मजबूत करने और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया।
- एन.आर. नायर बनाम भारत संघ (2000) वाद: इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण-केंद्रित अप्रोच को मान्यता देते हुए कहा कि जानवर संवेदनशील जीव होते हैं और उन्हें किसी भी प्रकार की क्रूरता का सामना किए बिना गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है।
- एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया बनाम ए. नागराज (2014) वाद: इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू जैसी पारंपरिक प्रथाओं की तुलना में पशुओं के अधिकारों को प्राथमिकता दी और पर्यावरण-केंद्रित अप्रोच को अपनाया।