120 से अधिक सांसदों ने एक संयुक्त पत्र में DPDP अधिनियम, 2023 की धारा 44(3) को निरस्त करने की मांग की है। ऐसा इस कारण, क्योंकि यह धारा सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 को कमजोर करती है।
- DPDP अधिनियम, 2023 की धारा 44(3) RTI अधिनियम, 2005 की धारा 8(1)(J) में संशोधन करती है जो सभी तरह की ‘व्यक्तिगत जानकारी’ को साझा करने पर प्रतिबंध लगाती है।
- RTI अधिनियम, 2005 की धारा 8(1)(J) में व्यक्तिगत जानकारी के प्रकटीकरण से छूट दी गई है, जब तक कि यह ‘लोक हित’ से संबंधित न हो।
उठाई गई प्रमुख चिंताएं
- सार्वजनिक जवाबदेही: व्यक्तिगत जानकारी की व्यापक छूट और अस्पष्ट परिभाषा लोक प्राधिकारियों को विवेकाधिकार प्रदान करती है।
- इससे नागरिकों की लोक अधिकारियों की जांच करने, नीतिगत निर्णयों पर स्पष्टता की मांग करने और संस्थानों को जवाबदेह ठहराने की क्षमता पर असर पड़ता है।
- निजता और पारदर्शिता के बीच संवैधानिक संतुलन: निजता का अधिकार और सूचना का अधिकार एक दूसरे के पूरक हैं। हालांकि, इन दोनों मौलिक अधिकारों के बीच संतुलन की आवश्यकता है।
- न्यायमूर्ति ए.पी. शाह समिति (2012): डेटा सुरक्षा के नाम पर RTI अधिनियम के तहत पहुंच के अधिकार को कमजोर नहीं करना चाहिए।
- के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ वाद (2017): यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रतिबंध उचित और आवश्यक हैं निजता एवं पारदर्शिता को आनुपातिकता ढांचे के भीतर समायोजित किया जाना चाहिए।
- गिरीश रामचंद्र देशपांडे बनाम केंद्रीय सूचना आयुक्त और अन्य: सुप्रीम कोर्ट ने निजता को प्राथमिकता दी और कहा कि यदि आवश्यक सूचना लोक हित में है तो उसका खुलासा किया जा सकता है।
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