'मिनी-स्विट्जरलैंड' के रूप में प्रसिद्ध पहलगाम के सुंदर 'बैसरन घाटी' में आतंकी हमला हुआ। इस हमले में कई नागरिकों की मौत हो गई।
- इस हमले की जिम्मेदारी गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत सूचीबद्ध प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के एक छद्म संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली है।
जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद के बने रहने के लिए जिम्मेदार कारक
- राज्य प्रायोजित आतंकवाद: पाकिस्तान पर जम्मू और कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठनों को सुरक्षित पनाहगाह, लॉजिस्टिक्स सहायता, प्रशिक्षण आदि प्रदान करने का आरोप लगाया गया है।
- छिद्रिल (Porous) सीमाएं: नियंत्रण रेखा पर दुर्गम भूभाग होने की वजह से आतंकवादियों और हथियारों की घुसपैठ का पता लगाना और रोकना मुश्किल हो जाता है।
- धार्मिक और नृजातीय तनाव: आतंकी समूह हिन्दू, मुस्लिम तथा अलग-अलग जनजातीय समूहों के सांप्रदायिक मिश्रण का सांप्रदायिक अशांति फैलाने के लिए उपयोग करते हैं।
- ओवर ग्राउंड वर्कर्स (OGWs): ये धन के प्रबंधन, भर्ती, प्रचार आदि के माध्यम से आतंकवाद को बनाए रखने में सहायता करते हैं।
- OGWs ऐसे व्यक्ति/ समूह होते हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से आतंकवादी गतिविधियों में भाग लिए बिना आतंकवादियों को लॉजिस्टिक्स सहायता, खुफिया जानकारी जैसी गैर-लड़ाकू सहायता प्रदान करते हैं।
आगे की राह
- सीमा सुरक्षा को मजबूत करना: मधुकर गुप्ता समिति की सिफारिशों को लागू किया जाना चाहिए। इन सिफारिशों में शामिल हैं- सुरक्षाबलों की सामरिक तैनाती, सीमा अवसंरचना को मजबूत करना, प्रौद्योगिकी का उपयोग करना आदि
- राजनीतिक संस्थाओं को मजबूत करना: स्थानीय शासन और जनप्रतिनिधियों को सशक्त बनाया जाना चाहिए।
- सामुदायिक भागीदारी: नागरिक-सैन्य सहयोग (जैसे ग्राम रक्षा गार्ड); कट्टरपंथ विरोधी और पुनर्वास जैसे विश्वास निर्माण उपाय लागू करने की आवश्यकता है।
जम्मू-कश्मीर में भारत के आतंकवाद-रोधी उपाय
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