भारत की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग को 'BBB (लो)' से बढ़ाकर 'BBB' कर दिया गया है। इसका मुख्य कारण संरचनात्मक सुधार, अवसंरचना में निवेश और राजकोषीय समेकन को बताया गया है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:
- भारत के लिए मजबूत संवृद्धि संभावनाएं: 'BBB' रेटिंग यह दर्शाती है कि भारत की ऋण चुकाने की क्षमता पर्याप्त है। यह संभावित सुभेद्यताओं के बावजूद वित्तीय दायित्वों को पूरा करने की क्षमता को दर्शाती है।
- एक प्रमुख शक्ति के रूप में मजबूत समष्टि आर्थिक ढांचा: भारत की वित्तीय प्रणाली अच्छी तरह विनियमित है, मुद्रास्फीति-लक्ष्यीकरण की प्रणाली व्यवस्थित है, और विनिमय दर लचीली है। इस वजह से अर्थव्यवस्था अधिक लचीली एवं स्थिर बनी हुई है।
सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग क्या है?
- यह किसी देश की ऋण चुकाने की क्षमता का आकलन है। यह दर्शाती है कि उस देश को धन उधार देने में कितना जोखिम है। यह रेटिंग सभी सरकारी बॉन्ड्स पर लागू होती है।
- यह मोटे तौर पर देशों को इनवेस्टमेंट ग्रेड या स्पेकुलेटिव ग्रेड के रूप में रेटिंग प्रदान करती है। इसमें स्पेकुलेटिव ग्रेड में आने वाले देशों में उधार पर डिफ़ॉल्ट की अधिक संभावना होती है।
- स्टैंडर्ड एंड पूअर्स, मूडीज और फिच रेटिंग्स ये तीन सबसे प्रभावशाली रेटिंग एजेंसियां हैं।
क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के साथ समस्याएं
- गुणात्मक संकेतकों पर अत्यधिक निर्भरता: इनकी रेटिंग प्रक्रिया अक्सर कुछ विशेषज्ञों की राय पर आधारित होती है, जिससे व्यक्तिपरक पूर्वाग्रह और "बैंडवैगन प्रभाव" हो सकता है।
- पारदर्शिता की कमी: ये निजी एजेंसियां हैं, जिनकी वित्त-पोषण प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव है। विश्व बैंक के विश्वव्यापी गवर्नेंस संकेतकों (WGIs) के अनुसार, ये संस्थागत गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती हैं।
- विकासशील देशों के प्रति पक्षपाती: आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार, अक्सर इन एजेंसियों द्वारा GDP संवृद्धि दर, मुद्रास्फीति और कुल सरकारी ऋण जैसे महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतकों की अनदेखी की जाती है।