बंगाल की खाड़ी पर किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि चरम मानसूनी घटनाओं के कारण समुद्री जीवन के लिए भोजन की उपलब्धता में 50% की गिरावट आई है। यह अध्ययन सदियों से लेकर सहस्राब्दियों तक के समय-पैमाने पर केन्द्रित था।
समुद्री पारिस्थितिकी-तंत्र पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
- प्लवक (Plankton) वृद्धि में कमी: चरम मानसूनी परिस्थितियां, समुद्र की गहराई से लेकर उसकी सतह तक पोषक तत्वों से भरपूर जल की ऊर्ध्वाधर गति में बाधा डालती हैं। इससे प्लवक के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- प्लवकों में पादप-प्लवक (छोटे पौधे) और प्राणी-प्लवक (कमजोर तैरने वाले जीव) शामिल हैं। ये खाद्य श्रृंखला का आधार बनते हैं।
- वे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं और उपोत्पाद के रूप में ऑक्सीजन छोड़ते हैं।
- समुद्री जैव विविधता को नुकसान: जलवायु परिवर्तन से मत्स्य सहित समुद्री प्रजातियों की विविधता कम हो रही है। इससे खाद्य सुरक्षा को खतरा हो रहा है।
- पोषक तत्वों की आपूर्ति पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन से जल की विविध परतों के मिश्रण पर असर डालने वाली पवन की तीव्रता कम हो सकती है।
- महासागरीय अम्लीकरण: जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के pH मान में गिरावट आ रही है। इससे कोरल जैसे जीवों के लिए उनकी संरचनात्मक मजबूती हेतु आवश्यक कैल्शियम कार्बोनेट की उपलब्धता कम हो जाती है।

समुद्री पारिस्थितिकी-तंत्र की सुरक्षा के लिए शुरू की गई पहलें
- वैश्विक
- समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCLOS): समुद्री संसाधनों के संरक्षण एवं संधारणीय उपयोग के लिए कानूनी फ्रेमवर्क उपलब्ध करवाता है।
- जहाजों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन (MARPOL): समुद्री पारिस्थितिकी-तंत्र पर पोत परिवहन गतिविधियों के प्रभाव को कम करना।
- भारत
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: समुद्री वन्यजीवों को संरक्षण प्रदान करता है।
- जलीय पारिस्थितिकी-तंत्र के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय योजना: जलीय पारिस्थितिकी-तंत्र के संरक्षण और प्रबंधन के लिए व्यापक योजना।