ऑपरेशन के दौरान, भारत ने युद्ध अभियानों के कई स्तरों पर NavIC (नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन) का उपयोग किया, जैसे- मिसाइल गाइडेंस, ड्रोन नेविगेशन, युद्ध क्षति आकलन, आदि।

NavIC के बारे में
- यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित एक स्वतंत्र स्टैंड-अलोन नेविगेशन उपग्रह प्रणाली है।
- इस प्रणाली को पहले IRNSS (भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली) के नाम से जाना जाता था।
- भारत विकासशील विश्व का एकमात्र देश है, जिसने इस तरह की प्रणाली तैनात की है।
- कवरेज: यह प्रणाली भारत के संपूर्ण भूभाग के अलावा इसकी सीमाओं से 1,500 कि.मी. तक के क्षेत्र को कवर करती है। यह अवस्थिति, वेग और समय (Position, Velocity & Timing) संबंधी सेवाएं प्रदान करती है।
- सैटेलाइट कांस्टेलेशन: इसमें 7 सैटेलाइट्स और 24 x 7 संचालित होने वाले ग्राउंड स्टेशनों का एक नेटवर्क शामिल है।
- 3 सैटेलाइट्स भू-स्थैतिक कक्षा (Geostationary orbit) में तथा 4 झुकाव युक्त भू-तुल्यकालिक कक्षा (Geosynchronous orbit) में स्थापित हैं।
- ये सैटेलाइट्स ड्यूल बैंड सिग्नल (L5 और S-बैंड) से लैस हैं।
- L5 सिग्नल सैन्य उपयोग के लिए एन्क्रिप्टेड है।
- प्रमुख सेवाएं: यह नागरिक उपयोगकर्ताओं के लिए मानक अवस्थिति सेवा (Standard Position Service) और अधिकृत उपयोगकर्ताओं के लिए प्रतिबंधित सेवा (Restricted Service) प्रदान करती है।
NavIC प्रणाली के सामरिक लाभ
NavIC के लिए भारत के दृष्टिकोण में शामिल हैं
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