इसके साथ ही, पिंकी मीणा बनाम राजस्थान हाई कोर्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व को भी रेखांकित भी किया।
- ज्ञातव्य है कि राजस्थान हाई कोर्ट ने 2020 में एक महिला न्यायिक अधिकारी को इसलिए हटा दिया था, क्योंकि उसने सिविल जज पद के लिए आवेदन करते समय अपने पूर्व में सरकारी शिक्षक के रूप में किए गए कार्य का उल्लेख नहीं किया था।
इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित टिप्पणी भी की है:
- न्यायपालिका में महिलाओं की प्रभावी भागीदारी को समग्र रूप से समझने के लिए तीन मुख्य परिघटनाओं पर गौर करना महत्वपूर्ण है:
- कानूनी पेशे में महिलाओं का शामिल होना;
- इस पेशे में महिलाओं का बने रहना और उनकी संख्या में वृद्धि;
- इस पेशे के वरिष्ठ पदों पर महिलाओं की संख्या में वृद्धि।
- इसके अलावा, न्यायपालिका में महिलाओं के अधिक प्रतिनिधित्व के निम्नलिखित लाभ भी हैं:
- निर्णय लेने की समग्र गुणवत्ता में सुधार होगा तथा विविध सामाजिक और व्यक्तिगत संदर्भों एवं अनुभवों के प्रति बेहतर प्रतिक्रिया सक्षम होगी।
- जेंडर आधारित रूढ़िवादिता में बदलाव आएगा, जिससे पुरुषों और महिलाओं की उचित भूमिकाओं को लेकर दृष्टिकोण एवं धारणाएं भी बदलेंगी।
- इससे निर्णय लेने वाले अन्य पदों पर अधिक प्रतिनिधित्व का मार्ग प्रशस्त होगा। उदाहरण के लिए- सरकार की विधायिका और कार्यपालिका में महिलाओं की संख्या बढ़ेगी।
- महिलाओं में न्याय पाने की इच्छा तथा न्यायालयों के माध्यम से अपने अधिकारों की रक्षा करने संबंधी प्रवृति को बढ़ावा मिलेगा।
न्यायपालिका में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व
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