ई-मेथनॉल शिपिंग और रासायनिक विनिर्माण जैसे हार्ड-टू-अबैट क्षेत्रकों में उत्सर्जन को कम करने के लिए एक व्यवहार्य समाधान प्रदान करता है।
- "हार्ड-टू-अबैट क्षेत्रकों" से तात्पर्य उन उद्योगों से है, जहां ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना विशेष रूप से कठिन और महंगा है।
ई-मेथेनॉल (या इलेक्ट्रो-मेथेनॉल) क्या होता है?
- यह एक निम्न-कार्बन ऊर्जा ईंधन है। इसे ग्रीन हाइड्रोजन को कैप्चर की गई कार्बन डाइऑक्साइड के साथ मिलकर बनाया जाता है।
- ई-मेथनॉल के उत्पादन में आमतौर पर तीन प्रमुख चरण शामिल होते हैं:
- ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन: नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा जल के विद्युत-अपघटन (Electrolysis) से हाइड्रोजन फीडस्टॉक का निर्माण किया जाता है।
- CO2 को कैप्चर करना: कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को औद्योगिक इकाइयों (जैसे स्टील या सीमेंट प्लांट्स) से या सीधे हवा से कैप्चर किया जाता है। इससे स्रोत पर समग्र उत्सर्जन कम हो जाता है।
- मेथनॉल संश्लेषण: हाइड्रोजन और CO2 को कैटेलिटिक रिएक्टर में दबाव के तहत संयोजित किया जाता है। इससे न्यूनतम उपोत्पादों के साथ मेथनॉल प्राप्त होता है।
- लाभ:
- इसे अवसंरचना में बदलाव के बिना इस्तेमाल किया जा सकता है।
- यह स्थिर होती है, क्योंकि इसे कमरे के (सामान्य) तापमान और परिवेश के दबाव पर संग्रहीत किया जा सकता है।
- इसका अन्य ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- उपयोग: शिपिंग उद्योग के अलावा ग्रीन हाइड्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइड के संश्लेषण से उत्पन्न ई-गैसोलीन और ई-केरोसिन सड़क एवं हवाई परिवहन के लिए बेहतर समाधान प्रदान करते हैं।
- चुनौतियां: नवीकरणीय विद्युत की उच्च लागत और उत्पादन संबंधी अदक्षता के कारण ई-मेथनॉल जीवाश्म-आधारित मेथनॉल की तुलना में काफी अधिक महंगा है।
भारत में 'मेथनॉल अर्थव्यवस्था' कार्यक्रम (नीति आयोग द्वारा)
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