राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम (National Industrial Corridor Development Programme: NICDP) | Current Affairs | Vision IAS
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    राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम (National Industrial Corridor Development Programme: NICDP)

    Posted 01 Jan 2025

    Updated 28 Nov 2025

    1 min read

    सुर्ख़ियों में क्यों? 

    हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम के तहत 12 नए औद्योगिक नोड्स/ शहरों को मंजूरी दी है। 

    अन्य संबंधित तथ्य 

    • ये 12 नए औद्योगिक नोड्स/ क्षेत्र, रणनीतिक रूप से 10 राज्यों में अवस्थित हैं और छह प्रमुख गलियारों से जुड़े हुए हैं। ऐसे में ये भारत की विनिर्माण क्षमताओं और आर्थिक विस्तार को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
    • ये औद्योगिक क्षेत्र उत्तराखंड के खुरपिया, पंजाब के राजपुरा-पटियाला, महाराष्ट्र के दिघी, केरल के पलक्काड, उत्तर प्रदेश के आगरा और प्रयागराज, बिहार के गया, तेलंगाना के जहीराबाद, आंध्र प्रदेश के ओरवाकल और कोप्पर्थी तथा राजस्थान के जोधपुर-पाली में स्थित होंगे।
    • नए औद्योगिक शहरों का विकास वैश्विक मानकों के अनुसार ग्रीनफील्ड स्मार्ट शहरों के रूप में किया जाएगा। इन्हें 'प्लग-एंड-प्ले' और 'वॉक-टू-वर्क' की अवधारणाओं पर "अहेड ऑफ डिमांड" के आधार पर विकसित किया जाएगा।

    राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम (NICDP) के बारे में

    • राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम की शुरुआत 2007 में दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा (DMIC) के शुभारंभ के साथ हुई थी। 
    • इस कार्यक्रम का उद्देश्य नए औद्योगिक शहरों को "स्मार्ट सिटी" के रूप में विकसित करना है, जहां अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों को अवसंरचना संबंधी अलग-अलग क्षेत्रों में आसानी से अपनाया जा सकेगा। 
    • इन औद्योगिक गलियारों को विनिर्माण क्षेत्रक में विकास को गति देने और व्यवस्थित शहरीकरण को बढ़ावा देने के लिए डिजाइन किया गया है। 
    • इन गलियारों को मजबूत मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी द्वारा समर्थन दिया जाएगा और इनका विकास राज्य सरकारों के सहयोग से किया जाएगा।
    • वर्तमान में, राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास निगम (NICDC) 11 औद्योगिक गलियारों की देखरेख करता है। ये गलियारे विकास के विभिन्न चरणों में हैं। 

    औद्योगिक शहरों का महत्त्व 

    • निवेश आकर्षित करना: NICDP का उद्देश्य परिवर्तनशील औद्योगिक इकोसिस्टम का विकास करना है। साथ ही, घरेलू एवं विदेश की बड़ी एंकर इंडस्ट्रीज और MSMEs से निवेश आकर्षित करना भी इसका उद्देश्य है।
    • स्मार्ट शहर और आधुनिक अवसंरचना: NICDP के तहत "अहेड ऑफ डिमांड" ग्रीनफील्ड स्मार्ट शहरों को विकसित करने की योजना बनाई गई है। इसमें औद्योगिक गतिविधियों के संधारणीय और दक्षता-पूर्वक संचालन के लिए अत्याधुनिक अवसंरचनाओं का उपयोग किया जाएगा। इसमें 'प्लग-एंड-प्ले' और 'वॉक-टू-वर्क' की अवधारणाएं भी शामिल होंगी।
    • कनेक्टिविटी और परिवहन में सुधार: ये परियोजनाएं पी.एम. गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के साथ मेल खाती हैं। इनमें यात्रियों, वस्तुओं और सेवाओं की निर्बाध आवाजाही के लिए मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी अवसंरचना को एकीकृत किया जाएगा। इनमें औद्योगिक शहर 'विकास केंद्र यानी ग्रोथ सेंटर' के रूप में काम करेंगे।
    • वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में भारत को एक प्रमुख भागीदार के रूप में स्थापित करना: NICDP औद्योगिक गतिविधियों के लिए विकसित भूखंड उपलब्ध कराएगा ताकि इनपर औद्योगिक गतिविधियां तत्काल शुरू हो सके। इससे देश और विदेश के निवेशकों को अपनी विनिर्माण इकाइयों की स्थापना करने में मदद मिलेगी।
    • रोजगार सृजन: NICDP से रोजगार के अधिक अवसर पैदा होने की संभावना है। एक अनुमान के अनुसार, इस कार्यक्रम से 10 लाख प्रत्यक्ष और 30 लाख अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा होंगे।
    • संधारणीय विकास: NICDP परियोजनाएं संधारणीयता को प्राथमिकता देंगी। इनमें सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) तथा हरित तकनीकों का उपयोग करके पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभावों को कम किया जा सकेगा। इस कार्यक्रम के तहत औद्योगिक शहरों को पर्यावरण संरक्षण के मॉडल के रूप में विकसित किया जाएगा।

    औद्योगिक गलियारों के विकास में मौजूद चुनौतियां

    • असंगत आर्थिक/ औद्योगिक और शहरी नियोजन: मौजूदा शहर औद्योगिक गलियारों के संभावित प्रभावों के लिए तैयार नहीं हैं। साथ ही, स्थानीय सरकारों को योजना निर्माण प्रक्रिया से काफी हद तक बाहर रखा जाता है।
      • उदाहरण: दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा योजना में नगर नियोजन प्राधिकरणों की भागीदारी सीमित रही है।
    • गवर्नेंस: स्पेशल पर्पज व्हीकल (SPVs) और स्थानीय शासी निकाय स्वतंत्र रूप से काम करते हैं। इससे कार्यक्रम में शामिल संस्थानों के बीच अधिकार क्षेत्र या जिम्मेदारियों को लेकर दुविधा की स्थिति बनी रहती है।
      • उदाहरण के लिए- तुमकुरु औद्योगिक टाउनशिप लिमिटेड नामक स्पेशल पर्पज व्हीकल (SPV) स्थानीय पंचायतों, नगर निगमों या नगर नियोजन विभाग से स्वतंत्र होकर काम करता है और उन सबमें आपसी समन्वय की भी कमी देखी गई है।
    • संस्थागत क्षमता: नए शहरों के उभरने और पूरी तरह विकसित होने में लंबा समय लगता है।
      • भविष्य में होने वाले बदलावों को प्रबंधित करने के लिए शहरी कर्मचारियों में क्षमता और प्रशिक्षण की कमी है।
    • भूमि अधिग्रहण: इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर रिपोर्ट-2009 के अनुसार, अवसंरचना और विकास संबंधी अन्य गतिविधियों में 70 प्रतिशत देरी की वजह भूमि अधिग्रहण से जुड़ी समस्याएं रही हैं।
    • कृषि भूमि का गैर-कृषि कार्यों में उपयोग के लिए भूमि का हस्तांतरण: उपजाऊ कृषि भूमि को संरक्षित करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक बार जब कृषि भूमि का शहरी-औद्योगिक गतिविधियों के लिए उपयोग कर लिया जाता है, तो फिर उसमें स्थायी परिवर्तन हो जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उस भूमि को खेती के लिए दोबारा उपयोग में नहीं लाया जा सकता।
    • पर्यावरण संबंधी चिंताएं: विशेष रूप से जल-संकट वाले क्षेत्रों में मौजूदा जल संसाधनों पर दबाव बढ़ने की आशंका है।

    आगे की राह

    • स्थान-विशेष की चुनौतियों का समाधान करने के लिए नियोजन प्रक्रियाओं में स्थानीय प्राधिकरणों और समुदायों को शामिल करना चाहिए।
    • स्पेशल पर्पज व्हीकल (SPVs) और औद्योगिक हितधारकों सहित सरकार एवं अन्य भागीदारों के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए।
    • भूमि अधिग्रहण में तेजी लाने के लिए किसानों को परियोजनाओं के आस-पास लघु भूखंड आवंटित करना चाहिए  ताकि उन्हें भी इन परियोजनाओं से लाभ मिल सके। साथ ही, उन्हें अपनी जमीन के बदले बाजार दरों से अधिक मुआवजा दिया जाना चाहिए।
    • भूमि उपयोग में बदलाव के दीर्घकालिक प्रभावों का आकलन करने के लिए एक मजबूत प्रणाली की आवश्यकता है। साथ ही, उपजाऊ भू-संसाधन की बर्बादी को रोकने के लिए औद्योगिक क्षेत्रों के अलग-अलग लघु क्लस्टर बनाने की भी आवश्यकता है।
    • केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत फ्रेमवर्क स्थापित करना चाहिए। इससे औद्योगिक गलियारों के लिए बेहतर योजना बनाई जा सकेगी और इनका क्रियान्वयन भी सही तरीके से संभव हो सकेगा।
    • परियोजना प्रबंधन और निगरानी हेतु एडवांस प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने से दक्षता में सुधार होगा, लागत में कमी आएगी और क्रियान्वयन में पारदर्शिता सुनिश्चित होगी।

    अवसंरचना विकास से जुड़ी अन्य पहलें 

    • विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ): विशेष आर्थिक क्षेत्र नीति वर्ष 2000 में जारी की गई थी। ये शुल्क-मुक्त एन्क्लेव होते हैं। इनमें स्थापित उद्योगों को कच्चे माल के लिए आयात लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती है। साथ ही, उन्हें कर और अन्य लाभ भी प्रदान किए जाते हैं।
    • राष्ट्रीय निवेश विनिर्माण क्षेत्र (NIMZ): ये विशाल विकसित भूखंड होते हैं। इनमें विश्व स्तरीय विनिर्माण गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल परिवेश उपलब्ध कराए जाते हैं।
    • औद्योगिक पार्क: यह एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र होता है जिसे विशेष रूप से उद्योगों के विकास और संचालन के लिए तैयार किया जाता है। 
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