बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार सामग्री (Child Sexual Exploitative and Abuse Material: CSEAM) | Current Affairs | Vision IAS
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    बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार सामग्री (Child Sexual Exploitative and Abuse Material: CSEAM)

    Posted 01 Jan 2025

    Updated 28 Nov 2025

    1 min read

    सुर्ख़ियों में क्यों?

    हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार सामग्री (CSEAM) को किसी भी रूप में रखना या देखना 'लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012' तथा 'सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000' के तहत एक गंभीर अपराध है।

    सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर एक नज़र:

    • मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया गया: सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि बाल पोर्नोग्राफ़िक सामग्री का मात्र भण्डारण करना कानून का उल्लंघन नहीं है, जब तक कि व्यक्ति ने पोर्नोग्राफ़िक उद्देश्यों के लिए किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल न किया हो।
    • CSEAM का भण्डारण अपराध है: सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि ऐसी सामग्री का न केवल भौतिक भंडारण बल्कि "कंस्ट्रक्टिव नियंत्रण" भी POCSO अधिनियम की धारा 15 के अंतर्गत आएगा, भले ही व्यक्ति ने सामग्री का सक्रिय रूप से उत्पादन या वितरण न किया हो। कंस्ट्रक्टिव नियंत्रण (Constructive possession) एक कानूनी अवधारणा है, जो एक ऐसी स्थिति का वर्णन करती है, जहां किसी के पास किसी परिसंपत्ति पर भौतिक/ वास्तविक अधिकार किए बिना उसे नियंत्रित करने की शक्ति होती है।
      • POCSO अधिनियम की धारा 15 में बच्चों से संबंधित पोर्नोग्राफ़िक सामग्री के भंडारण या स्वामित्व को दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।
    • दुष्ट इरादा (Common Malevolent Intent): CSEAM देखने और बाल यौन शोषण के कृत्य में कोई अंतर नहीं है, भले ही ये दोनों व्यावहारिक रूप से अलग हैं। ऐसा इस कारण, क्योंकि दोनों गतिविधियों में समान रूप से यौन संतुष्टि के लिए बच्चे का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रकार, इन दोनों ही कृत्यों में दुष्ट इरादा निहित है। 
    • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट ने CSEAM को बच्चों के मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से सम्मान के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन माना है। 
    • शब्दावली में बदलाव: सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की अदालतों को निर्देश दिया है कि वे "चाइल्ड पोर्नोग्राफी" शब्दावली का इस्तेमाल न करें। इसकी बजाय "चाइल्ड सेक्सुअल एक्सप्लॉइटेटिव एंड एब्यूज मटेरियल यानी बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार सामग्री (CSEAM)" शब्दावली का इस्तेमाल करें। 
      • सुप्रीम कोर्ट ने संसद को सुझाव भी दिया कि इस शब्दावली को बदलने के लिए POCSO अधिनियम में संशोधन किया जाना चाहिए। साथ ही, केंद्र सरकार से इस दौरान अध्यादेश जारी करने के लिए भी कहा गया है।

    CSEAM का प्रभाव

    • मानसिक आघात: यह अवसाद, चिंता और मनोवैज्ञानिक विकार के रूप में प्रकट हो सकता है।
    • पीड़ित को लोगों द्वारा हेय दृष्टि से देखने से उसमें लज्जित होने, अपराधबोध और मूल्यरहित होने की भावनाएं बढ़ने लगती हैं। 
    • बच्चे का अमानवीयकरण: जहां बच्चे को उपभोग की जाने वाली वस्तु के रूप में देखा जाता है।
    • सामाजिक प्रभाव: इसमें घोर सामाजिक कलंक और अलगाव शामिल है। 
    • आर्थिक प्रभाव: इसमें कम शैक्षणिक उपलब्धि, रोजगार पाने में कठिनाई और आर्थिक कठिनाइयां आदि आते हैं।

    सुप्रीम कोर्ट के सुझाव

    • यौन शिक्षा को बढ़ावा देना: व्यापक यौन शिक्षा कार्यक्रमों को लागू करना चाहिए, जिसमें चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी के कानूनी और नैतिक प्रभावों के बारे में जानकारी शामिल हो।
      • इन कार्यक्रमों से युवाओं को सहमति और शोषण के प्रभाव की स्पष्ट समझ मिलनी चाहिए। 
      • कोर्ट ने झारखंड में उड़ान कार्यक्रम जैसे सफल यौन शिक्षा कार्यक्रमों को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया।
    • समिति का गठन करना: केंद्र सरकार एक विशेषज्ञ समिति के गठन पर विचार कर सकती है। यह समिति स्वास्थ्य और यौन शिक्षा के लिए एक समग्र कार्यक्रम तैयार करेगी तथा साथ ही, बच्चों में POCSO के बारे में जागरूकता भी बढ़ाएगी। 
    • सहायता और पुनर्वास: सरकार द्वारा पीड़ितों को सहायता सेवाएं प्रदान करनी चाहिए और अपराधियों के लिए पुनर्वास कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए। 
      • इन सेवाओं में अंतर्निहित समस्याओं का समाधान करने और स्वास्थ्यप्रद विकास को बढ़ावा देने के लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श, चिकित्सा सहायता तथा शैक्षिक सहायता शामिल की जानी चाहिए। 
    • युवाओं में समस्यात्मक यौन व्यवहार की शुरुआती पहचान और हस्तक्षेप: ऐसे युवाओं की समय रहते पहचान करनी चाहिए और उनके सुधार के लिए रणनीतियां लागू करनी चाहिए।
    • सरकार के दायित्व पर जोर: POCSO केंद्र और राज्य सरकारों को उपाय करने तथा यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करता है कि इसके प्रावधानों का टेलीविजन, रेडियो एवं प्रिंट मीडिया सहित मीडिया के अलग-अलग माध्यमों से व्यापक प्रचार किया जाए।
    • सामाजिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देना: समाज को POCSO अधिनियम के तहत अपराधों से पीड़ित हुए बच्चों के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इसके लिए लोगों के व्यवहार में परिवर्तन करना होगा; पीड़ितों की सुरक्षा के लिए कानूनी फ्रेमवर्क में सुधार करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि अपराधियों को जवाबदेह ठहराया जाए।

    लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO), 2012 के बारे में 

    • उद्देश्य: POCSO यौन शोषण और दुर्व्यवहार से सभी बच्चों की सुरक्षा एवं बचाव के उद्देश्य से बनाया गया एक व्यापक कानून है। 
      • इसमें न्यायिक प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में बच्चों के हित और कल्याण को समुचित महत्त्व दिया गया है। इसके लिए इस कानून में रिपोर्टिंग, साक्ष्य के एकत्रीकरण, अपराधों की जांच और ट्रायल के लिए बाल अनुकूल प्रक्रियाओं को अपनाया गया है।
    • अपराध: POCSO के तहत दंडनीय यौन अपराधों की तीन व्यापक श्रेणियां हैं: यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी के लिए बच्चे का इस्तेमाल करना। 
      • POCSO के तहत 'बच्चे' को 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • 2019 में अधिनियम में संशोधन: इस संशोधन के जरिये बच्चों से जुड़े यौन अपराध के मामलों में मृत्युदंड सहित अधिक कठोर दंड का प्रावधान शामिल किया गया है।
    • विशेष न्यायालयों की स्थापना: POCSO नियमों के तहत विशेष न्यायालय राहत या पुनर्वास के दौरान बच्चे की जरूरतों को पूरा करने के लिए अंतरिम मुआवजे का आदेश पारित कर सकता है। 
      • इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन की एक रिपोर्ट के अनुसार, फास्ट-ट्रैक विशेष न्यायालय, POCSO मामलों को निपटाने में अन्य न्यायालयों की तुलना में अधिक दक्ष हैं (फास्ट-ट्रैक विशेष न्यायालयों के बारे में और अधिक जानकारी के लिए इस टॉपिक के अंत में दिया गया बॉक्स देखें)।

    बच्चों की सुरक्षा के लिए किए गए अन्य उपाय

    • सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000: इसमें 2008 में संशोधन किया गया था। इस संशोधन द्वारा इस अधिनियम के दायरे को व्यापक बनाया गया है। इसमें उन अपराधों को भी शामिल किया गया है, जिनके प्रति बच्चे सबसे अधिक सुभेद्य होते हैं।
      • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 का उद्देश्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री (CSEAM) के प्रसार को रोकना है। 
        • ये नियम सोशल मीडिया मध्यवर्तियों के लिए CSEAM की पहचान करने और ऐसी सामग्री तक उपयोगकर्ता की पहुंच को रोकने के लिए टूल्स विकसित करना अनिवार्य बनाते हैं।
    • किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015: यह अधिनियम देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे को ऐसे बच्चे के रूप में परिभाषित करता है, जिसके साथ यौन या अवैध उद्देश्यों के लिए दुर्व्यवहार, अत्याचार या शोषण किया गया है; किया जा रहा है; या होने की संभावना है। 
    • भारतीय न्याय संहिता: इसका अध्याय-V महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों, विशेष रूप से यौन अपराधों से संबंधित है। 
    • बच्चों के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना, 2016: यह योजना बच्चों के खिलाफ अपराधों, विशेष रूप से यौन अपराधों को रोकने के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करती है। 
    • संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार अभिसमय (UN-CRC), 1990 का अनुसमर्थन: भारत द्वारा CRC का अनुसमर्थन ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से बच्चों के खिलाफ अपराधों से संबंधित प्रावधानों को मजबूत करता है। यह उनके अधिकारों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षित बनाए रखना सुनिश्चित करता है।

     

    निष्कर्ष

    सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारत में बाल यौन शोषण से संबंधित कानूनी परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। कोर्ट ने बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री के मात्र भण्डारण को भी अपराध घोषित करके तथा बच्चों के लिए कानूनी सुरक्षा का विस्तार करके, बाल सुरक्षा कानूनों के अधिक मजबूत प्रवर्तन के लिए रास्ता तैयार किया है।

    संबंधित सुर्ख़ियां: फास्ट-ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स (FTSCs)

    • इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, बलात्कार के मामलों और 'POCSO अधिनियम' से संबंधित मामलों को निपटाने में फास्ट-ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स (FTSCs) अधिक कुशल हैं।
      • फास्ट-ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स (FTSCs) के बारे में:
        • सरकार ने 2019 में FTSC योजना बनाई थी, ताकि देशभर में FTSCs और विशेष POCSO न्यायालयों की स्थापना की जा सके। इससे बलात्कार और POCSO अधिनियम के तहत आने वाले मामलों का त्वरित निपटान किया जा सकेगा।
        • विधि और न्याय मंत्रालय इस योजना को राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों तथा हाई कोर्ट्स के साथ मिलकर लागू कर रहा है। 
        • FTSCs संबंधी योजना एक केंद्र प्रायोजित योजना है। इस योजना को 2019 में शुरू किया गया था। अब इसे 2026 तक बढ़ा दिया गया है।
        • FSTC के सदस्य: इसके प्रत्येक न्यायालय में 1 न्यायिक अधिकारी और 7 कर्मचारी सदस्य के रूप में शामिल होते हैं।
      • रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र:
        • 2022 में 83% और 2023 में 94% निपटान दर के साथ, FTSCs ने उच्चतम दक्षता का प्रदर्शन किया है।
        • इसके विपरीत, इससे पहले सभी न्यायालयों में बलात्कार और POCSO से जुड़े मामलों की निपटान दर अत्यंत कम थी। जिसमें 2022 में पारंपरिक अदालतों द्वारा यह दर केवल 10% ही थी। 
        • अगस्त 2024 तक, 1023 निर्धारित न्यायालयों में से, 410 समर्पित POCSO न्यायालय हैं और इन्हे मिलाकर कुल 755 FTSCs कार्यरत हैं।
        • भारत को देशभर में लंबित बलात्कार और POCSO के सभी मामलों को खत्म करने के लिए योजना में कम-से-कम 1,000 और FTSCs शामिल करने की आवश्यकता होगी।
        • निर्भया फंड का 24% अप्रयुक्त है और अभी तक आवंटित नहीं किया गया है। इसका उपयोग करके अतिरिक्त FTSCs को कम-से-कम 2 वर्षों तक संचालित किया जा सकता है।
    • Tags :
    • Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act
    • Fast Track Special Courts (FTSCs)
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