सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार सामग्री (CSEAM) को किसी भी रूप में रखना या देखना 'लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012' तथा 'सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000' के तहत एक गंभीर अपराध है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर एक नज़र:
- मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया गया: सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि बाल पोर्नोग्राफ़िक सामग्री का मात्र भण्डारण करना कानून का उल्लंघन नहीं है, जब तक कि व्यक्ति ने पोर्नोग्राफ़िक उद्देश्यों के लिए किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल न किया हो।
- CSEAM का भण्डारण अपराध है: सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि ऐसी सामग्री का न केवल भौतिक भंडारण बल्कि "कंस्ट्रक्टिव नियंत्रण" भी POCSO अधिनियम की धारा 15 के अंतर्गत आएगा, भले ही व्यक्ति ने सामग्री का सक्रिय रूप से उत्पादन या वितरण न किया हो। कंस्ट्रक्टिव नियंत्रण (Constructive possession) एक कानूनी अवधारणा है, जो एक ऐसी स्थिति का वर्णन करती है, जहां किसी के पास किसी परिसंपत्ति पर भौतिक/ वास्तविक अधिकार किए बिना उसे नियंत्रित करने की शक्ति होती है।
- POCSO अधिनियम की धारा 15 में बच्चों से संबंधित पोर्नोग्राफ़िक सामग्री के भंडारण या स्वामित्व को दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।
- दुष्ट इरादा (Common Malevolent Intent): CSEAM देखने और बाल यौन शोषण के कृत्य में कोई अंतर नहीं है, भले ही ये दोनों व्यावहारिक रूप से अलग हैं। ऐसा इस कारण, क्योंकि दोनों गतिविधियों में समान रूप से यौन संतुष्टि के लिए बच्चे का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रकार, इन दोनों ही कृत्यों में दुष्ट इरादा निहित है।
- मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट ने CSEAM को बच्चों के मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से सम्मान के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन माना है।
- शब्दावली में बदलाव: सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की अदालतों को निर्देश दिया है कि वे "चाइल्ड पोर्नोग्राफी" शब्दावली का इस्तेमाल न करें। इसकी बजाय "चाइल्ड सेक्सुअल एक्सप्लॉइटेटिव एंड एब्यूज मटेरियल यानी बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार सामग्री (CSEAM)" शब्दावली का इस्तेमाल करें।
- सुप्रीम कोर्ट ने संसद को सुझाव भी दिया कि इस शब्दावली को बदलने के लिए POCSO अधिनियम में संशोधन किया जाना चाहिए। साथ ही, केंद्र सरकार से इस दौरान अध्यादेश जारी करने के लिए भी कहा गया है।
CSEAM का प्रभाव
- मानसिक आघात: यह अवसाद, चिंता और मनोवैज्ञानिक विकार के रूप में प्रकट हो सकता है।
- पीड़ित को लोगों द्वारा हेय दृष्टि से देखने से उसमें लज्जित होने, अपराधबोध और मूल्यरहित होने की भावनाएं बढ़ने लगती हैं।
- बच्चे का अमानवीयकरण: जहां बच्चे को उपभोग की जाने वाली वस्तु के रूप में देखा जाता है।
- सामाजिक प्रभाव: इसमें घोर सामाजिक कलंक और अलगाव शामिल है।
- आर्थिक प्रभाव: इसमें कम शैक्षणिक उपलब्धि, रोजगार पाने में कठिनाई और आर्थिक कठिनाइयां आदि आते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के सुझाव
- यौन शिक्षा को बढ़ावा देना: व्यापक यौन शिक्षा कार्यक्रमों को लागू करना चाहिए, जिसमें चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी के कानूनी और नैतिक प्रभावों के बारे में जानकारी शामिल हो।
- इन कार्यक्रमों से युवाओं को सहमति और शोषण के प्रभाव की स्पष्ट समझ मिलनी चाहिए।
- कोर्ट ने झारखंड में उड़ान कार्यक्रम जैसे सफल यौन शिक्षा कार्यक्रमों को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया।
- समिति का गठन करना: केंद्र सरकार एक विशेषज्ञ समिति के गठन पर विचार कर सकती है। यह समिति स्वास्थ्य और यौन शिक्षा के लिए एक समग्र कार्यक्रम तैयार करेगी तथा साथ ही, बच्चों में POCSO के बारे में जागरूकता भी बढ़ाएगी।
- सहायता और पुनर्वास: सरकार द्वारा पीड़ितों को सहायता सेवाएं प्रदान करनी चाहिए और अपराधियों के लिए पुनर्वास कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए।
- इन सेवाओं में अंतर्निहित समस्याओं का समाधान करने और स्वास्थ्यप्रद विकास को बढ़ावा देने के लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श, चिकित्सा सहायता तथा शैक्षिक सहायता शामिल की जानी चाहिए।
- युवाओं में समस्यात्मक यौन व्यवहार की शुरुआती पहचान और हस्तक्षेप: ऐसे युवाओं की समय रहते पहचान करनी चाहिए और उनके सुधार के लिए रणनीतियां लागू करनी चाहिए।
- सरकार के दायित्व पर जोर: POCSO केंद्र और राज्य सरकारों को उपाय करने तथा यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करता है कि इसके प्रावधानों का टेलीविजन, रेडियो एवं प्रिंट मीडिया सहित मीडिया के अलग-अलग माध्यमों से व्यापक प्रचार किया जाए।
- सामाजिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देना: समाज को POCSO अधिनियम के तहत अपराधों से पीड़ित हुए बच्चों के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इसके लिए लोगों के व्यवहार में परिवर्तन करना होगा; पीड़ितों की सुरक्षा के लिए कानूनी फ्रेमवर्क में सुधार करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि अपराधियों को जवाबदेह ठहराया जाए।
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO), 2012 के बारे में
बच्चों की सुरक्षा के लिए किए गए अन्य उपाय
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निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारत में बाल यौन शोषण से संबंधित कानूनी परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। कोर्ट ने बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री के मात्र भण्डारण को भी अपराध घोषित करके तथा बच्चों के लिए कानूनी सुरक्षा का विस्तार करके, बाल सुरक्षा कानूनों के अधिक मजबूत प्रवर्तन के लिए रास्ता तैयार किया है।
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