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बच्चों में सोशल मीडिया की लत (SOCIAL MEDIA ADDICTION IN CHILDREN)

04 Feb 2025
43 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

ऑस्ट्रेलिया ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून पास कर लिया है। ऐसा करने वाला ऑस्ट्रेलिया विश्व का पहला देश है।

ऑनलाइन सुरक्षा संशोधन (सोशल मीडिया न्यूनतम आयु) विधेयक 2024 के प्रमुख प्रावधान

  • सोशल मीडिया उपयोग करने की न्यूनतम आयु: एज रिस्ट्रिक्टेड सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सुनिश्चित करना होगा। इन प्लेटफॉर्म्स को 16 वर्ष से कम आयु के ऑस्ट्रेलियाई बच्चों को सोशल मीडिया अकाउंट बनाने से रोकने के लिए उचित कदम उठाना होगा।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की जिम्मेदारी: कंपनियां यह सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी होंगी कि निर्धारित आयु से कम उम्र के बच्चे उनके प्लेटफॉर्म पर अकाउंट नहीं बना सकें।
  • नियम का पालन न करने पर जुर्माना: इस कानून के तहत, तकनीकी कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म्स पर बच्चों के अकाउंट्स को ब्लॉक करना होगा, अन्यथा उन्हें 49.5 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर तक का जुर्माना भुगतना पड़ेगा। 

बच्चों में सोशल मीडिया की लत के कारण

  • साथियों का प्रभाव: बच्चे अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पोस्ट पर मिलने वाले लाइक, कमेंट, शेयर से प्रभावित होते हैं।
  • तत्काल संतुष्टि: सोशल मीडिया, मस्तिष्क के रिवॉर्ड सेंटर को सक्रिय करके डोपामाइन नामक न्यूरोट्रांसमीटर को रिलीज करता है जो आत्मतुष्टि की भावना पैदा करता है। इससे बच्चों में इन तात्कालिक अवार्ड्स या संतुष्टि को हासिल करने की लालसा बढ़ जाती है।
  • माता-पिता: आधुनिक समाज में, खासकर शहरी समाज में माता और पिता, दोनों कामकाजी होते हैं। इससे माता-पिता बच्चे पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाते हैं, जिसके कारण "आईपैड किड" जैसी आधुनिक परिघटना सामने आई है।
  • पलायनवाद: बच्चे वास्तविक दुनिया की समस्याओं जैसे अकेलेपन और तनाव से बचने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं। इसके कारण उनकी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भावनात्मक निर्भरता बढ़ जाती है।
  • एल्गोरिथम-आधारित लगाव: एल्गोरिदम कंटेंट को इस तरह से तैयार करते हैं कि बच्चे लंबे समय तक सोशल मीडिया से जुड़े रहें। इससे सोशल मीडिया का उपयोग न करना लगभग असंभव हो जाता है। 

बच्चों द्वारा सोशल मीडिया का उपयोग करने पर प्रतिबंध के पक्ष और विपक्ष में तर्क

प्रतिबंध के पक्ष में तर्क

प्रतिबंध के विपक्ष में तर्क

  • साइबरबुलिंग: सोशल मीडिया हानिकारक कंटेंट भी प्रसारित सकता है। इससे बच्चों में अवसाद, चिंता और यहां तक कि आत्महत्या की भावना भी प्रबल हो सकती है।
  • अत्यधिक स्क्रीन टाइम: यह शारीरिक गतिविधि में कमी, नींद नहीं आना, और स्वास्थ्य संबंधी कुछ अन्य समस्याओं का कारण बनता है।
  • एकाग्रचित्तता कम होना  और शैक्षिक प्रदर्शन पर प्रभाव पड़ना: अलग-अलग डिजिटल कंटेंट के बीच लगातार स्विच करने से ध्यान भटकता है। यह स्कूली शिक्षा में प्रदर्शन को प्रभावित करती है।
  • सामाजिक कौशल में कमी: सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग सामूहिक संवाद या परिचर्चा को सीमित करता है। इससे सामाजिक लगाव और भावनात्मक समझ में कमी आती है।
    • उदाहरण के लिए, सोशल मीडिया पोस्ट फिल्टर और फोटोशॉप का उपयोग सच्चाई का झूठा एहसास दिलाता है।
  • खतरनाक वायरल ट्रेंड: "ब्लैकआउट चैलेंज" (सांस रोकना) और "डेवियस लिक" (चोरी करना) जैसी जोखिम भरी वायरल चैलेंज के चलते शरीर को नुकसान पहुंच सकता है, कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है एवं अन्य हानिकारक परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
  • सोशलाइजेशन और लर्निंग: सोशल मीडिया किशोरों को देश-दुनिया और मित्रों से कनेक्टेड रहने, होमवर्क में सहयोग करने और क्रिएटिविटी व समस्या समाधान जैसे कौशल विकसित करने में मदद करता है।
  • प्रतिबंध का अधिक प्रभाव नहीं पड़ना: सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाना कठिन है और यह किशोरों को डार्क वेब जैसे असुरक्षित इंटरनेट का उपयोग करने के लिए मजबूर कर सकता है।
  • सोशल मीडिया उपयोग के लिए आयु सीमा का व्यावहारिक नहीं होना: सोशल मीडिया के उपयोग हेतु आयु सीमा (जैसे 13 या 16) निर्धारित करना यह सुनिश्चित नहीं करता कि उससे अधिक उम्र के लोग मानसिक रूप से तैयार हैं, क्योंकि हर बच्चे में  परिपक्वता का स्तर अलग-अलग होता है।
  • प्लेटफॉर्म्स को सुधारने पर ध्यान केंद्रित करना: सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की बजाय, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को सुरक्षित और बच्चों के अनुकूल बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • गलतियों से सीखना: सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने से किशोर ऑनलाइन खतरों से निपटने के तरीके सीखने से वंचित रह सकते हैं। इससे डिजिटल दुनिया में आत्मविश्वास और चुनौतियों को सामना करने की उनकी क्षमता  कम हो सकती है।

बच्चों को ऑनलाइन सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकारी पहलें

  • सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000 की धारा 67B: यह बाल यौन शोषण से संबंधित कंटेंट को ऑनलाइन प्रकाशित करने, प्रसारित करने या देखने पर कठोर दंड का प्रावधान करती है।
  • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023: यह डेटा फ़िड्युसरी के लिए 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के व्यक्तिगत डेटा की प्रोसेसिंग के लिए "माता-पिता का सत्यापन के आधार पर सहमति" प्राप्त करना अनिवार्य करता है।
  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission of Protection of Child Rights: NCPCR): इसने एक ऑनलाइन शिकायत प्रबंधन प्रणाली स्थापित की है।

बच्चों को ऑनलाइन सुरक्षा प्रदान करने के लिए वैश्विक कदम

देश

नीति/विनियमन

विवरण

संयुक्त राज्य अमेरिका

चिल्ड्रेन्स ऑनलाइन प्राइवेसी प्रोटेक्शन एक्ट (COPPA) (1998) और चिल्ड्रन इंटरनेट प्रोटेक्शन एक्ट (CIPA) (2000)

COPPA 13 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का व्यक्तिगत डेटा एकत्र करने के लिए माता-पिता की सहमति अनिवार्य करता है। 

  • CIPA स्कूलों और पुस्तकालयों में अनुचित कंटेंट पर प्रतिबंध लगाता है।

यूरोपीय संघ

जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन  (GDPR)

16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के व्यक्तिगत डेटा की प्रोसेसिंग के लिए माता-पिता की सहमति आवश्यक है, हालांकि सदस्य देश उस आयु सीमा को घटाकर 13 वर्ष कर सकते हैं।

ब्रिटेन

ऑनलाइन सेफ्टी एक्ट (2023)

फेसबुक, यूट्यूब और टिक टॉक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए सख्त मानक निर्धारित करता है, जिसमें  एक निश्चित आयु से पहले उपयोग पर प्रतिबंध भी शामिल हैं।

 

आगे की राह

  • सेफ्टी आधारित डिज़ाइन:
    • डिफॉल्ट (स्वतः) प्राइवेसी सेटिंग: सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म पर नाबालिगों की निजता की सुरक्षा के लिए डिफॉल्ट सेटिंग प्रदान करनी चाहिए, विशेष रूप से बच्चों के डेटा संग्रह करने के मामलों में। उदाहरण के लिए, यूनाइटेड किंगडम का आयु अनुरूप डिज़ाइन कोड। 
    • हानिकारक कंटेंट का AI द्वारा पता लगाना: बच्चों की फीड्स में हानिकारक इंटरएक्शन या अनुपयोगी कंटेंट की पहचान करने और उसे हटाने के लिए AI टूल का उपयोग करना चाहिए।  
  • विनियम:
    • टेक कंपनियों की जवाबदेही: आयु संबंधी प्रतिबंध लगाने की बजाय, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को बच्चों के लिए सुरक्षित एवं अनुकूल स्पेस बनाने की जिम्मेदारी तकनीकी कंपनियों पर डाली जानी चाहिए।
      • मेटा जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आयु सीमा (13+) निर्धारित करते हैं।
    • बाल इंटरनेट में निवेश: सरकारें "बाल इंटरनेट (Children's Internet)" विकसित कर सकती है। यह सुरक्षित और शैक्षिक वातावरण वाला स्पेस होगा, साथ ही यह मेनस्ट्रीम सोशल मीडिया के खतरों से मुक्त होगा।
  • डिजिटल कौशल और शिक्षा में सुधार: बच्चों और माता-पिता को जिम्मेदार ऑनलाइन व्यवहार, डिजिटल साक्षरता और स्व-विनियमन के बारे में शिक्षित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए, केरल के डिजिटल डि-एडिक्शन (D-DAD) केंद्र डिजिटल व्यसन का सामना कर रहे बच्चों के लिए मुफ्त काउंसलिंग प्रदान करते हैं।
  • माता-पिता की भागीदारी और नियंत्रण:
    • एक साथ अकाउंट बनाएं: अपने बच्चे के साथ सोशल मीडिया अकाउंट बनाएं, ताकि आवश्यक प्राइवेसी सेटिंग्स, अति सुरक्षित पासवर्ड और उपयोगी कंटेंट सुनिश्चित की जा सके।
    • स्क्रीन टाइम को निर्धारित करना: स्क्रीन टाइम को प्रबंधित करने के लिए उपलब्ध सेटिंग्स लागू करना चाहिए, ताकि स्वस्थ डिजिटल आदतों को बढ़ावा दिया जा सके।
    • सोशल मीडिया गतिविधि पर निरंतर निगरानी: अपने बच्चे की सोशल मीडिया गतिविधियों की नियमित रूप से निगरानी करनी चाहिए, ताकि किसी संदेहास्पद गतिविधि की तुरंत पहचान की जा सके।
      • व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा करना: अपने बच्चे को यह सिखाएं कि व्यक्तिगत जानकारी (पता, फोन नंबर) को निजी रखें ताकि इसे ऑनलाइन सार्वजनिक होने से रोका जा सके।
      • अवांछित इंटरैक्शन की रिपोर्ट करें और ब्लॉक करें: अपने बच्चे को साइबरबुलिंग और उत्पीड़न से बचाने के लिए हानिकारक अकाउंट की रिपोर्ट करना या ब्लॉक करना सिखाएं।

अन्य संबंधित सुर्खियां: ब्रेन रोट

"ब्रेन रॉट" को ऑक्सफोर्ड वर्ड ऑफ द ईयर, 2024 घोषित किया गया है।

ब्रेन रोट के बारे में

  • यह मानव मस्तिष्क की अति उत्तेजना का परिणाम है।
  • यह विशेष रूप से सोशल मीडिया पर हानिकारक ऑनलाइन कंटेंट में अधिक समय खपाने की वजह से मानसिक स्वास्थ्य और संज्ञानात्मक क्षमताओं में गिरावट को दर्शाता है।
  • यह ध्यान केंद्रित करने में कमी, आलोचनात्मक सोच में कमी और मानसिक स्वास्थ्य की समस्या जैसी चिंताओं से जुड़ा हुआ है।
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