संशोधित आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण {Revamped Periodic Labour Force Survey (PLFS)} | Current Affairs | Vision IAS
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संशोधित आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण {Revamped Periodic Labour Force Survey (PLFS)}

Posted 01 Jul 2025

Updated 24 Jun 2025

39 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistics Office: NSO) ने जनवरी, 2025 से आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) में संशोधन कर उसे नया रूप दिया है।

 आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के बारे में 

  • संचालन एजेंसी: राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO)
  • मंत्रालय: सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा 2017 में प्रस्तुत किया गया।
  • उद्देश्य:
    • 'वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' (Current Weekly Status': CWS) में शहरी क्षेत्रों (अब ग्रामीण क्षेत्र भी शामिल) के लिए केवल तीन महीने के लघु समय अंतराल में रोजगार और बेरोजगारी से संबंधित प्रमुख संकेतकों का अनुमान लगाना।
    • ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में वार्षिक रूप से 'सामान्य स्थिति यानी यूजुअल स्टेटस' (ps+ss) और वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS), दोनों में रोजगार और बेरोजगारी के संकेतकों का अनुमान लगाना।

PLFS में प्रयुक्त प्रमुख शब्दावलियां:

  • श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate: LFPR): इसे कुल आबादी की तुलना में श्रम बल (अर्थात: नियोजित, रोजगार की तलाश में जुटे या कार्य के लिए उपलब्ध व्यक्ति) में शामिल व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • वर्कर-जनसंख्या अनुपात (Worker Population Ratio: WPR): यह कुल आबादी में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों का प्रतिशत है।
  • बेरोजगारी दर (Unemployment Rate: UR): यह श्रम बल में शामिल व्यक्तियों में से बेरोजगार व्यक्तियों का प्रतिशत है।
  • गतिविधि की स्थिति (Activity Status): किसी व्यक्ति की गतिविधि की स्थिति को निर्धारित संदर्भ अवधि के दौरान किए गए कार्यों के आधार पर निर्धारित किया जाता है। 
  • सामान्य स्थिति (Usual Status): सर्वेक्षण की तिथि से पहले के 365 दिनों की संदर्भ अवधि के दौरान किसी व्यक्ति की गतिविधि (कार्य) को उस व्यक्ति की सामान्य गतिविधि स्थिति कहा जाता है। 
    • किसी व्यक्ति की सामान्य मुख्य गतिविधि (Usual principal activity) और सामान्य सहायक आर्थिक गतिविधि को मिला दिया जाए तो वह उसकी सामान्य गतिविधि की स्थिति मानी जाती है, जिसे सामान्य स्थिति (ps+ss) के रूप में लिखा जाता है।
  • वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS): सर्वेक्षण की तिथि से पहले के 7 दिनों में किसी व्यक्ति की गतिविधि को 'व्यक्ति की वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' कहा जाता है।
  • वर्तमान दैनिक गतिविधि स्थिति (Current Daily Activity Status: CDS): यदि किसी दिन व्यक्ति ने कम से कम 1 घंटा काम किया हो, तो उसे उस दिन के लिए कार्य  की स्थिति प्रदान की जाती है।

PLFS में किए गए मुख्य बदलाव

  • राष्ट्रीय स्तर (देश के स्तर) पर प्रमुख श्रम बाजार संकेतकों का मासिक अनुमान: वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS) में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए मासिक आधार पर रोजगार और बेरोजगारी के प्रमुख संकेतक जारी किए जाएंगे।
    • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) का पहला मासिक बुलेटिन जारी किया जा चुका है।
  • वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS) में त्रैमासिक अनुमान को ग्रामीण क्षेत्रों तक विस्तारित करना: पहले PLFS केवल शहरी क्षेत्रों के लिए त्रैमासिक श्रम बाजार संकेतक प्रदान करता था, अब यह ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों के लिए उपलब्ध होगा।
  • कैलेंडर वर्ष पर आधारित रिपोर्टिंग: वर्ष 2025 से, वार्षिक PLFS परिणाम कैलेंडर वर्ष के आधार पर जारी होंगे, यानी सर्वेक्षण अवधि अब किसी विशेष वर्ष के लिए जनवरी से दिसंबर तक होगी (पहले जुलाई–जून चक्र था), और यह सामान्य स्थिति (ps+ss) और वर्तमान साप्ताहिक स्थिति, दोनों में लागू होगा।
  • सैंपल के आकार में वृद्धि: PLFS में शामिल किए जाने वाले परिवारों के सैंपल में 2.65 गुना वृद्धि की गई है।
  • कवर किए जाने वाले भौगोलिक क्षेत्र में वृद्धि: जिले को प्राथमिक भौगोलिक इकाई बनाया गया है, जिसे राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए अलग बेसिक स्ट्रेटम या बुनियादी स्तर कहा गया है, ताकि कवर किए गए भौगोलिक क्षेत्र के अधिकांश भाग के लिए फर्स्ट स्टेज यूनिट (FSU) का चयन किया जा सके।
    • शेष भागों में NSS क्षेत्र को बेसिक स्ट्रेटम बनाया गया है।
  • सामाजिक संकेतकों के आंकड़ों की बेहतर उपलब्धता: इसमें शिक्षा; कब्जे वाली भूमि और पट्टे पर दी गई भूमि; और किराया; पेंशन, ब्याज और रेमिटेंस से प्राप्त परिवारों की सामान्य मासिक आय से संबंधित अतिरिक्त विवरण भी शामिल किए गए हैं।

भारत में रोजगार संबंधी संकेतकों की गणना के लिए अन्य पद्धतियां/ रिपोर्ट

  • रोजगार बाजार सूचना कार्यक्रम (Employment Market Information Programme): यह सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में रोजगार की संरचना के बारे में क्षेत्रीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर नियमित अंतराल पर जानकारी प्रदान करता है, साथ ही रोजगार के स्तर में होने वाले परिवर्तनों की निगरानी भी करता है।
    • यह कार्यक्रम रोजगार कार्यालय (रिक्तियों की अनिवार्य अधिसूचना) अधिनियम (Employment Exchange (Compulsory Notification of Vacancies) Act), 1959 के तहत लागू किया गया है।
  • ILO रिपोर्ट्स: जैसे कि वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक, आदि।
  • जनगणना: इसमें मुख्य और सीमांत (Marginal) श्रमिकों से संबंधित डेटा एकत्र किया जाता है, जो अलग-अलग सामाजिक और आर्थिक विशेषताओं को कवर करता है। इसमें श्रमिकों का वर्गीकरण औद्योगिक गतिविधि और उनके पेशे के अनुसार किया जाता है।
  • श्रम ब्यूरो (Labour Bureau): यह केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय (MoL&E) के अधीन एक संबद्ध कार्यालय है। इसका मुख्यालय चंडीगढ़ में है। यह विभिन्न श्रम कानूनों, जैसे- बागान श्रम अधिनियम, 1951; न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948; आदि के अंतर्गत वैधानिक और स्वैच्छिक रिटर्न्स (इच्छानुसार, अनिवार्य नहीं) के माध्यम से आंकड़े एकत्रित करता है।
    • श्रम सांख्यिकी के आंकड़े वार्षिक औद्योगिक सर्वेक्षण (ASI), ग्रामीण श्रमिक जांच, तथा ग्रामीण उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) - ग्रामीण श्रमिक/ कृषि श्रमिक आदि के माध्यम से एकत्र किए जाते हैं।

भारत में रोजगार से जुड़े संकेतकों को मापने की पद्धतियों से संबंधित समस्याएं

  • डेटा में असंगतता: सैंपलिंग पद्धतियों, सर्वेक्षण का समय, और पूछे जाने वाले प्रश्नों के प्रकार में अंतर के कारण अलग-अलग आंकड़े सामने आते हैं।
  • कमजोर मापदंड: वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS) में यदि कोई व्यक्ति पिछले सप्ताह में कम से कम 1 घंटे कार्यरत रहा, तो उसे "रोजगार प्राप्त (नियोजित)" माना जाता है, जिससे बेरोजगारी का वास्तविक आकलन नहीं हो पाता और आंकड़े अधूरे रह जाते हैं।
  • परिभाषा में विसंगति: भारत में रोजगार की परिभाषा अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं है। 
  • कई सर्वेक्षणों की सीमित प्रकृति: त्रैमासिक रोजगार सर्वेक्षण (Quarterly Employment Survey: QES) केवल रोजगार के आंकड़े प्रस्तुत करता है लेकिन बेरोजगारी से संबंधित कोई भी जानकारी नहीं देता, जिससे यह सर्वेक्षण अधूरा रह जाता है।
  • सैंपल का आकार छोटा होना: भारत के कार्यबल का आकार लगभग 60 करोड़ है, लेकिन PLFS में मात्र 2,72,304 परिवारों को शामिल किया जाता है।
  • समय लगना, डेटा की गुणवत्ता में कमी एवं सही जवाब नहीं मिलना: कई बार डेटा संग्रहण और प्रकाशन के बीच अधिक समय लग जाता है। 

आगे की राह 

  • संयुक्त राष्ट्र-राष्ट्रीय लेखा प्रणाली की परिभाषाओं (जैसे कि अनौपचारिक क्षेत्र से संबंधित परिभाषा) को व्यापक स्तर पर अपनाने की आवश्यकता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने भारत से आग्रह किया है कि वह श्रम-सांख्यिकीविदों के 19वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा निर्धारित मानकों का पालन करे।
  • आंकड़ों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने, डेटा सत्यापन और प्रोसेसिंग में तेजी लाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग किया जा सकता है।
  • उद्यमों का सर्वेक्षण नियमित रूप से और बार-बार किए जाने की आवश्यकता है।
    • इसके साथ ही, आर्थिक गणना भी नियमित अंतराल पर करवाने की आवश्यकता है।
  • एक समान पद्धति के तहत सभी सरकारी डेटा के लिए एक केंद्रीय सर्वर बनाना।
  • सर्वेक्षण में दोहराव को समाप्त करना और रिपोर्ट्स में सामंजस्य सुनिश्चित करना: सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, श्रम और रोजगार मंत्रालय तथा रोजगार पर डेटा एकत्र करने वाले अन्य मंत्रालयों को एक साथ मिलकर कार्य करना चाहिए।
  • डेटा की सुलभता और डेटा विजुअलाइज़ेशन में सुधार की आवश्यकता: भारत में NSS को भी ऐसे टूल्स और प्लेटफॉर्म विकसित करने चाहिए, जिससे जन जागरूकता बढ़े और सांख्यिकीय जानकारियों के प्रति सार्वजनिक सहभागिता में वृद्धि हो।
    • कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में डेटा स्टोरीटेलिंग पोर्टल्स होते हैं जिनमें इंटरैक्टिव मानचित्र और ग्राफ होते हैं जो आम नागरिकों को सामाजिक-आर्थिक ट्रेंड्स को आसानी से समझने में मदद करते हैं।
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