हाल ही में, भारत के रजिस्ट्रार जनरल (Registrar General of India: RGI) ने सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) रिपोर्ट 2021 जारी की है। इसमें भारत और बड़े राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों के लिए प्रजनन एवं मृत्यु दर संकेतकों पर डेटा शामिल है।
SRS के बारे में:
सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) एक बड़े पैमाने का जनसांख्यिकीय सर्वेक्षण है। यह राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तरों पर जन्म दर, मृत्यु दर एवं अन्य प्रजनन तथा मृत्यु दर संकेतकों पर एक विश्वसनीय अनुमान प्रदान करता है।
SRS का सैंपल नवीनतम जनगणना के आधार पर हर दस साल में अपडेट किया जाता है।
SRS रिपोर्ट 2021 के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:
मानदंड और परिभाषाएं
SRS रिपोर्ट 2021 द्वारा उजागर किए गए रुझान
क्रूड बर्थ रेट (CBR) = (एक वर्ष के दौरान हुए जीवित जन्मों की संख्या ÷ वर्ष के मध्य की जनसंख्या) × 100
CBR में 11% की गिरावट दर्ज की गई है। यह 2011 में 21.8 थी, जो 2021 में घटकर 19.3 रह गई।
राज्यवार स्थिति: सबसे ज्यादा बिहार (25.6), सबसे कम केरल (12.9)।
जनसंख्या की संरचना (कुल जनसंख्या का प्रतिशत)
0-14 आयु वर्ग: यह 1991 के 36.3% से घटकर 2021 में 24.8% तक आ गईहै।
आर्थिक रूप से सक्रिय जनसंख्या (15-59 वर्ष): इसमें बढ़ोतरी हुई है। यह 1991 में 57.7% थी, जो 2021 में 66.2% हो गई।
वृद्ध आबादी: इसमें बढ़ोतरी हुई है (60+ वर्ष: 9% तथा 65+ वर्ष: 5.9%)।
महिलाओं के लिए प्रभावी विवाह की औसत आयु: इसमें बढ़ोतरी हुई है। यह 1990 में 19.3 वर्ष थी, जो 2021 में 22.5 वर्ष तक हो गई।
मातृ मृत्यु अनुपात (Maternal Mortality Ratio: MMR)
मातृ मृत्यु अनुपात किसी निर्धारित अवधि में प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों पर होने वाली माताओं की मृत्यु की संख्या है।
गिरावट: यह 2014-16 में हर 1 लाख जीवित बच्चों के जन्मों पर 130 थी, जो 2019-21 में घटकर 93 रह गई, यानी इसमें 37 अंकों की कमी हुई है।
लक्ष्य: यह सतत विकास लक्ष्य (SDG) के MMR लक्ष्य (2030 तक ≤ 70) के करीब है।
शिशु मृत्यु दर
नवजात मृत्यु दर (NMR): प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर जन्म से लेकर 29 दिनों तक के नवजात शिशुओं की मृत्यु की संख्या।
शिशु मृत्यु दर (IMR): प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर जन्म से लेकर 1 वर्ष की आयु तक के शिशुओं की मृत्यु की संख्या।
पांच वर्ष से कम आयु में मृत्यु दर (U5MR): प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु की संख्या।
नवजात मृत्यु दर (Neonatal Mortality Rate: NMR)
गिरावट: यह 2014 में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 26 थी, जो 2021 में घटकर प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 19 हो गई है।
लक्ष्य: यह सतत विकास लक्ष्य (SDG) के NMR लक्ष्य (2030 तक ≤ 12) के करीब है।
राज्यों में:
सबसे कम: केरल
सबसे ज़्यादा: मध्य प्रदेश
शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate: IMR)
गिरावट: यह 2014 के प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 39 से घटकर 2021 में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 27 हो गई है।
राज्यों में:
सबसे कम: केरल (6)
सबसे ज़्यादा: मध्य प्रदेश (41)
इस गिरावट के बावजूद, राष्ट्रीय स्तर पर जन्म लेने वाले प्रत्येक 37 शिशुओं में से एक शिशु की अपनी आयु के पहले साल में ही मृत्यु हो जाती है।
पांच वर्ष से कम आयु में मृत्यु दर (Under-five Mortality Rate: U5MR)
गिरावट: यह 2014 में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 45 थी, जो 2021 में घटकर प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 31 हो गई है।
लक्ष्य: यह सतत विकास लक्ष्य (SDG) के U5MR लक्ष्य (2030 तक ≤ 25) के करीब है।
राज्यों में:
सबसे कम: केरल
सबसे ज्यादा: मध्य प्रदेश
जन्म के समय लिंगानुपात
जन्म के समय प्रति 1000 लड़कों पर जन्म लेने वाली लड़कियों की संख्या
बढ़ोतरी: यह 2018-20 में 907 था, जो 2019-21 में बढ़कर 913 हो गया है।
राज्यों में:
सबसे ज्यादा: केरल (962)
सबसे कम: उत्तराखंड (852)
ग्रामीण (2019-21): 912
शहरी (2019-21): 918
कुल प्रजनन दर (TFR)
यह एक महिला द्वारा उसके जनन काल के दौरान जन्म देने वाले बच्चों की औसत संख्या होती है।
कुल प्रजनन दर (TFR) = 2.0
गिरावट: इसमें 2016-2021 के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर गिरावट आई है।
राज्यों में:
सबसे ज्यादा: बिहार (3.0)
सबसे कम: दिल्ली और पश्चिम बंगाल (1.4)
प्रतिस्थापन स्तर (TFR) यानी 2.1, राष्ट्रीय स्तर पर 16 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों के साथ हासिल कर लिया गया है।
ग्रामीण: 2.2
शहरी: 1.6
जन्म के समय जीवन प्रत्याशा
2017-21 की अवधि के लिए 69.8 वर्ष थी, जो 2016-20 की तुलना में 0.2 वर्ष की गिरावट को दर्शाती है।
पुरुषों के लिए जीवन प्रत्याशा 68.2 वर्ष और महिलाओं के लिए 71.6 वर्ष अनुमानित की गई है।
संस्थागत प्रसव
2021 में, लगभग 91.1% प्रसव संस्थागत थे, जिनमें सरकारी और निजी अस्पताल दोनों शामिल हैं।
शहरी क्षेत्रों में: 95.5%
ग्रामीण क्षेत्रों में: 89.7%
निष्कर्ष
मातृ और शिशु स्वास्थ्य में सुधार सुनिश्चित करना एक स्वस्थ वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी को तैयार करेगा। यह पीढ़ी भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश और विकास में योगदान देगी। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकारी योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन, जन जागरूकता, गुणवत्ता वाली आधारभूत संरचना एवं सेवाओं का विकास जरूरी है।