
छत्तीसगढ़ ने एक अभिनव योजना पेश की है। इस योजना के तहत उसने अपने वनों की पारिस्थितिकी-तंत्र सेवाओं को हरित GDP से जोड़ने का फैसला किया है।
- यह कदम स्वच्छ वायु, जल संरक्षण, जैव विविधता जैसे वनों के महत्वपूर्ण पर्यावरणीय योगदानों और राज्य की आर्थिक प्रगति के बीच मौजूद प्रत्यक्ष संबंधों को जानने में मददगार साबित हो सकता है।
- छत्तीसगढ़ की 44% भूमि पर वन हैं, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- इसके अलावा तेंदू पत्ते, लाख, शहद और औषधीय पादप जैसे वन उत्पाद राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
हरित या ग्रीन GDP के बारे में
- उत्पत्ति: 'ग्रीन GDP' की अवधारणा 1980 के दशक के अंत में विकसित हुई थी। यह अवधारणा पारंपरिक GDP गणना के विपरीत, GDP में पर्यावरण पर आर्थिक गतिविधियों के प्रभावों को सम्मिलित करने पर केंद्रित है।
- परिभाषा: ग्रीन GDP का तात्पर्य पर्यावरण की दृष्टि से समायोजित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से है।
- गणना:
- ग्रीन GDP = निवल घरेलू उत्पाद - (प्राकृतिक संसाधनों की कमी की लागत + पारिस्थितिकी-तंत्र के क्षरण की लागत)
- ग्रीन GDP की आवश्यकता: पारंपरिक GDP गणना में पर्यावरणीय गिरावट और क्षरण की अनदेखी की जाती है। यह अक्सर उन्हें आर्थिक लाभ के रूप में मानती है।
- उदाहरण के लिए- वर्षावन को काटने और लकड़ी बेचने से GDP में वृद्धि होती है, परन्तु इसके कारण दीर्घकालिक कल्याण और संवृद्धि पर नकारात्मक असर पड़ता है।
ग्रीन GDP लेखांकन के लिए शुरू की गई पहलें
- पर्यावरण-आर्थिक लेखांकन प्रणाली (SEEA): इसे 1993 में संयुक्त राष्ट्र ने पेश किया था। इसका उद्देश्य पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बीच संबंधों को समझने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तुलनीय आंकड़े तैयार करने हेतु अवधारणाओं व तरीकों को मानकीकृत करना है।
- वेल्थ अकाउंटिंग एंड द वैल्यूएशन ऑफ इकोसिस्टम सर्विसेज (वेव्स/ WAVES): यह विश्व बैंक की पहल है। इसका उद्देश्य सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए यह सुनिश्चित करना है कि प्राकृतिक संसाधनों को विकास संबंधी योजना निर्माण और राष्ट्रीय आर्थिक लेखाओं में सुव्यवस्थित व एकीकृत किया जाए।