पोलर वॉर्टेक्स के दक्षिण दिशा में प्रसार के कारण आर्कटिक ब्लास्ट (Arctic Blast) हुआ है। इसके कारण संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में अत्यधिक ठंड पड़ रही है।
पोलर वॉर्टेक्स या ध्रुवीय भंवर क्या है?

- परिभाषा: यह पृथ्वी के दोनों ध्रुवों के चारों ओर संचरण (वामावर्त/एंटीक्लॉक) करता निम्न दाब और ठंडी हवा का एक विशाल क्षेत्र होता है।
- इसके प्रकार:
- क्षोभमंडलीय ध्रुवीय भंवर: ये धरातल से 10-15 किमी की ऊंचाई पर वायुमंडल की सबसे निचली परत में निर्मित होते हैं।
- समतापमंडलीय ध्रुवीय भंवर: ये धरातल से लगभग 15 से 50 किमी की ऊंचाई पर निर्मित होते हैं।
- क्षोभमंडलीय ध्रुवीय भंवर के विपरीत, समतापमंडलीय ध्रुवीय भंवर ग्रीष्मकाल के दौरान निर्मित नहीं होते हैं और शरद ऋतु के दौरान ये अत्यधिक प्रचंड हो जाते हैं।
ध्रुवीय भंवर के प्रभाव
- आर्कटिक ब्लास्ट: ध्रुवीय भंवर में व्यवधान के कारण अमेरिका में ठंडी हवा का अचानक और तीव्र प्रसार होने लगता है। आमतौर पर ध्रुवीय भंवर ठंडी हवा को आर्कटिक क्षेत्र तक ही सीमित रखता है।
- चरम मौसमी घटनाएं: कमजोर ध्रुवीय भंवर के कारण जेट स्ट्रीम दक्षिण की ओर सरक सकती है। इससे आर्कटिक की ठंडी हवा का प्रसार निचले अक्षांशों तक हो जाता है। इसके कारण चरम मौसमी घटनाएं शुरू हो जाती हैं।
- ओज़ोन क्षरण: ध्रुवीय भंवर के भीतर मौजूद ठंडी हवा विशेष रूप से अंटार्कटिका में ओज़ोन के क्षरण को तेज करती है। इससे ओज़ोन छिद्र बन सकता है।
- भारत पर प्रभाव: कमजोर ध्रुवीय भंवर के परिणामस्वरूप अधिक पश्चिमी विक्षोभ उत्पन्न होते हैं। इससे पश्चिमी हिमालय में भारी बर्फबारी होती है और उत्तरी भारत में तापमान काफी गिर जाता है।