हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ‘न्याय प्राप्ति के लिए अदालत की शरण लेने का अधिकार’ हमारे लोकतंत्र की आधारशिला है। हालांकि, यह अधिकार निरपेक्ष (Absolute) नहीं है। इसलिए इस अधिकार का प्रयोग जिम्मेदारी से किया जाना चाहिए।
- इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिकाकर्ता द्वारा कई निराधार मुकदमे दायर करने के लिए जुर्माना लगाया और कहा कि ऐसे मुकदमें न्यायिक व्यवस्था पर बोझ बढ़ाते हैं।
- निराधार मुकदमे (Frivolous litigation): ये ऐसे मुकदमे होते है, जिनमें कानून या तथ्य के मामले में कोई तर्कपूर्ण आधार नहीं होता है। इनका उद्देश्य किसी को परेशान करना अथवा न्यायिक प्रक्रिया में देरी या व्यवधान उत्पन्न करना होता है।
- गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को सुब्रत रॉय सहारा बनाम भारत संघ (2014), दलीप सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2010) और के. सी. थारकन बनाम भारतीय स्टेट बैंक और अन्य (2023) जैसे मामलों में उठाया था।
‘न्याय तक पहुंच का अधिकार’ के बारे में
- अर्थ: यह विधि के शासन का एक बुनियादी सिद्धांत है। यह सिद्धांत पीड़ित लोगों को औपचारिक या अनौपचारिक न्यायिक संस्थानों के माध्यम से अपनी शिकायतों का समाधान प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने अनिता कुशवाहा बनाम पुष्पा सूदन (2016) मामले में निर्णय दिया था कि ‘न्याय तक पहुंच का अधिकार’ अनुच्छेद 14 के तहत ‘समानता का अधिकार’ और अनुच्छेद 21 के तहत ‘प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार’ के तहत एक मौलिक अधिकार है।
‘न्याय तक पहुंच के अधिकार’ से संबंधित अन्य प्रावधान
- संवैधानिक प्रावधान
- संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का उल्लेख है।
- ‘राज्य की नीति के निदेशक तत्व’ में अनुच्छेद 39A के तहत राज्य को समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को ‘निःशुल्क कानूनी सहायता’ उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है।
- मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में अनुच्छेद 32 के तहत संवैधानिक उपचार पाने के तरीकों का उल्लेख हैं।
- इसी तरह संविधान का अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालयों को मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन और संरक्षण के लिए रिट जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
- जनहित याचिका (PIL): इसके तहत लोकस स्टैंडी के नियम को उदार बनाया गया है। इससे अब केवल प्रभावित व्यक्ति ही नहीं, बल्कि जनहित में कार्य करने वाले व्यक्ति या संगठन भी किसी अन्य व्यक्ति के अधिकारों के प्रवर्तन के लिए याचिका दायर कर सकते हैं।
- वैकल्पिक विवाद-निवारण तंत्र (ADR): यह कम खर्चे में और कम औपचारिक प्रक्रिया द्वारा शिकायत के समाधान का माध्यम है।
