क्रेडिट इन्फॉर्मेशन ब्यूरो की एक हालिया रिपोर्ट ‘CRIF हाई मार्क’ के अनुसार, माइक्रोफाइनेंस क्षेत्रक में कर्जदारों द्वारा कर्ज न चुकाने की दर में काफी वृद्धि दर्ज हुई है। गौरतलब है कि इसी अवधि में भारत में बैंकिंग क्षेत्रक की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) में समग्र गिरावट दर्ज की गई है।
- माइक्रोफाइनेंस या सूक्ष्म वित्त का उद्देश्य लघु राशि वाली बचत, ऋण और अन्य वित्तीय सेवाएं प्रदान करना है। ये वित्तीय सेवाएं मुख्य रूप से ग्रामीण, अर्ध-शहरी और शहरी क्षेत्रों में गरीबों को प्रदान की जाती हैं। इनका उद्देश्य गरीबों की आय बढ़ाना और उनके जीवन स्तर में सुधार लाना है।
- RBI के अनुसार 3,00,000 रुपये तक की वार्षिक आय वाले परिवारों के व्यक्तियों को दिए गए सभी जमानत-मुक्त ऋणों को माइक्रोफाइनेंस ऋण माना जाता है।
- ऐसे परिवारों को निम्न आय वाला परिवार माना जाता है।
माइक्रोफाइनेंस का महत्व
- वित्तीय समावेशन: यह पारंपरिक बैंकिंग व्यवस्था का लाभ नहीं उठाने वाले लगभग 8 करोड़ निम्न आय वाले व्यक्तियों को ऋण जैसी सेवाएं प्रदान करता है।
- ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन: यह हस्तशिल्प, कृषि और लघु-स्तरीय विनिर्माण जैसे स्थानीय उद्योगों को वित्तीय सहायता प्रदान करते हुए स्वरोजगार को बढ़ावा देता है। इससे मौसमी रोजगार या शोषणकारी नौकरियों पर लोगों की निर्भरता कम हो जाती है।
- महिला सशक्तीकरण: महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को माइक्रोफाइनेंस सहायता मिलने से आर्थिक स्वतंत्रता और निर्णय लेने की शक्ति मिलती है।
माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं के समक्ष चुनौतियां
- इन्हें गरीबों को ऋण देने के लिए बड़ी संस्थाओं से कम ब्याज दर पर लंबे समय के लिए फंड जुटाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- ये अपना अधिकांश ऋण गरीब लोगों को देते हैं। इन ऋणों की रिकवरी आसान नहीं होती है। इससे माइक्रोफाइनेंस संस्थानों का ऋण डूबने का खतरा बना रहता है।
- राज्यों द्वारा ऋण माफी की घोषणाएं कर्जदाताओं को समय पर ऋण चुकाने से हतोत्साहित करती हैं।
भारत में माइक्रोफाइनेंस योजनाएं
|