हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA), 1999 के तहत जारी मौजूदा विनियमों की समीक्षा की। इस कदम का उद्देश्य भारतीय रुपये में सीमा-पार लेन-देन यानी ‘रुपये’ के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देना है।
RBI द्वारा FEMA विनियमों में किए गए हालिया बदलाव:
- विदेशों में रहने वाले व्यक्तियों को दिए गए अधिकार:
- वे अधिकृत डीलर (Authorized Dealer) बैंकों की विदेशी शाखाओं में INR खाते खोल सकते हैं। इन खातों का उपयोग भारत में रहने वाले व्यक्तियों के साथ सभी अनुमत चालू (current) और पूंजी खाता (capital account) लेन-देनों को निपटाने के लिए किया जा सकता है।
- वे अपने विशेष अनिवासी रुपया खाता (SNRR) और विशेष वोस्ट्रो रुपया खाता (SVRA) जैसे रिपैट्रिएबल INR खातों में मौजूद बैलेंस का उपयोग करके अन्य विदेशियों के साथ लेन-देन कर सकते हैं।
- रिपैट्रिएबल INR खातों में बैलेंस राशि का उपयोग विदेशी निवेश के लिए किया जा सकता है।
- भारतीय निर्यातक अब विदेशों में किसी भी विदेशी मुद्रा में खाते खोल सकेंगे। इन खातों का उपयोग व्यापारिक लेन-देन को निपटाने, निर्यात से अर्जित धनराशि प्राप्त करने और इन धनराशियों का आयात के भुगतान के लिए उपयोग कर सकेंगे।
रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण क्या है?
- यह एक प्रक्रिया है, जिसके तहत अन्य देशों के साथ लेन-देन में भारतीय रुपये का उपयोग बढ़ाया जाता है।
- इसके तहत शुरुआत में रुपये में आयात और निर्यात व्यापार को बढ़ावा दिया जाता है। फिर इसे अन्य चालू खाता लेन-देन में, और अंत में पूंजी खाता लेन-देन में उपयोग में लाया जाता है।
रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभ
- रुपये में लेन-देन करने से भारतीय अर्थव्यवस्था को विदेशों में घटित घटनाओं से आहत होने से बचाने में मदद मिलेगी। साथ ही, इससे वित्तीय मामलों में स्वतंत्र निर्णय लेने को बढ़ावा मिलेगा।
- व्यापारिक लेन-देन में रुपये का उपयोग करने से व्यापार सुगमता को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही, इससे डॉलर की मांग में कमी आएगी और भारतीय रुपये के मूल्य में वृद्धि होगी।
- बाहरी आर्थिक आघातों से निपटने के लिए अधिक विदेशी मुद्रा भंडार रखने की आवश्यकता कम हो जाएगी।
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