विश्व बैंक की हालिया ग्लोबल इकोनॉमिक प्रोस्पेक्टस रिपोर्ट में 21वीं सदी के पहले 25 वर्षों के दौरान विश्व की अर्थव्यवस्था में हुए उतार-चढ़ाव का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है (इन्फोग्राफिक देखें)।
ग्लोबल इकोनॉमिक प्रोस्पेक्टस रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र

- EMDEs के प्रभाव में वृद्धि: वर्ष 2000 से 2025 के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था में उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (EMDEs) की हिस्सेदारी में काफी वृद्धि हुई है। इसमें EM3 देश (चीन, भारत और ब्राजील) अग्रणी एवं नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभा रहे हैं।
- आर्थिक संवृद्धि के मामले में भारत अग्रणी: भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है। वित्त वर्ष 2026-27 तक भारत की अर्थव्यवस्था में 6.7% की वार्षिक वृद्धि होने का अनुमान है, जो 2022 में हासिल 7% की वृद्धि दर से थोड़ा कम है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाने वाले संकेतक
- अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों का मजबूत प्रदर्शन:
- सेवा क्षेत्रक: इस क्षेत्रक में निरंतर विस्तार हो रहा है। वर्ष 2000 के बाद से सेवा निर्यात में लगातार वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप दक्षिण एशियाई देशों के बीच व्यापार एकीकरण में भी वृद्धि हुई है।
- विनिर्माण: लॉजिस्टिक्स को बेहतर बनाने और कर संबंधी सुधारों हेतु सरकार की विभिन्न पहलों से विनिर्माण को बढ़ावा मिला है।
- मजबूत आर्थिक आधार:
- राजकोषीय स्थिति: भारत के राजकोषीय घाटे में कमी और कर राजस्व में वृद्धि हुई है।
- निवेश परिदृश्य: कंपनियों की बैलेंस शीट मजबूत होने और वित्तीय बाजारों में सुधार के कारण निजी निवेश में वृद्धि हुई है, जिससे कुल मिलाकर निवेश में स्थिरता आई है।
- खपत की स्थिति: श्रम बाजार में मजबूती, ऋण में विस्तार और मुद्रास्फीति में गिरावट के कारण निजी उपभोग में वृद्धि को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है।
- हालाँकि, सरकारी खर्च में वृद्धि सीमित रह सकती है।
- इस रिपोर्ट में निम्नलिखित प्रमुख चुनौतियों की पहचान की गई है:
- बढ़ता संरक्षणवाद और भू-राजनीतिक तनाव;
- कर्ज का बढ़ता बोझ और जलवायु परिवर्तन से संबंधित हानि।
आर्थिक सफलता के लिए ऐसी नीतियों की आवश्यकता है, जो निवेश, उत्पादकता और मैक्रो-इकोनॉमिक स्थिरता को बढ़ावा दें। साथ ही, बाहरी दबावों को भी प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की आवश्यकता है।