संयुक्त राज्य अमेरिका के नए राष्ट्रपति ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते से बाहर निकलने का निर्णय लिया है। साथ ही, उन्होंने ‘अमेरिका फर्स्ट नीति’ को भी प्राथमिकता देने की घोषणा की है।
- ये निर्णय अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से संबंधित मानदंडों और संस्थाओं को नया आकार दे सकते हैं।
वैश्विक संस्थाओं से अमेरिका के बाहर निकलने का प्रभाव
- फंड की कमी: अमेरिका के बाहर निकलने से इन संस्थाओं को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, 2024-25 के दौरान, अमेरिका ने WHO के कुल राजस्व में 19% का योगदान दिया था।
- जलवायु कार्रवाई पर असर: साल 2024 को अब तक का सबसे गर्म वर्ष रिकॉर्ड किया गया है।संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व में ग्रीनहाउस गैस का दूसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक देश है। सबसे बड़ा उत्सर्जक चीन है। जाहिर है अमेरिका के पीछे हटने से वैश्विक जलवायु कार्रवाई की दिशा में प्रयास कमजोर हो सकते हैं।
प्रमुख वैश्विक संस्थाएं और उनके समक्ष चुनौतियां
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC): यह संयुक्त राष्ट्र का सबसे शक्तिशाली अंग है। इसके बावजूद यह अभी भी पुरातन बना हुआ है। विकासशील देशों को इसकी स्थायी सदस्यता प्रदान नहीं की गई है।

- विश्व स्वास्थ्य संगठन: कोविड-19 महामारी के दौरान इस संस्थान की कमियां उजागर हुई थीं। साथ ही, इस संस्थान पर पक्षपात करने का आरोप भी लगाया जाता रहा है।
- विश्व व्यापार संगठन: कृषि सब्सिडी विवाद और व्यापार बाधाएं; ई-कॉमर्स जैसे नए क्षेत्रकों पर सदस्य देशों के बीच व्यापक असहमति आदि। इसके अलावा, अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध भी विश्व व्यापार संगठन की कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है।
- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC): हाल ही में, UNFCCC के पक्षकारों का 29वां सम्मेलन (COP-29) अजरबैजान में आयोजित हुआ था। इसमें जलवायु कार्रवाई हेतु विकासशील देशों को दी जाने वाली वित्त-पोषण की राशि को बढ़ाकर 2035 तक प्रतिवर्ष 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर करने पर सहमति बनी थी। हालांकि, विकासशील देशों ने 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की मांग की थी।
- ध्यातव्य है कि UNFCCC 1994 में प्रभावी हुआ था।
वैश्विक संस्थाओं में सुधार जरूरी क्यों है?
- संरचनात्मक बदलाव के लिए: संस्थाओं को स्वतंत्र, उत्तरदायी और अधिक प्रतिनिधित्व वाली बनाने तथा इनकी जवाबदेही, सत्यनिष्ठा एवं स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए सुधार जरूरी है।
- विकासशील देशों को अधिक वित्त-पोषण प्रदान करने के लिए: गरीबी उन्मूलन और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए विकासशील देशों को अधिक फंडिंग की जरूरत है।
- नई चुनौतियों से निपटने के लिए: साइबर सुरक्षा जैसी नई चुनौतियों से निपटने के लिए फ्रेमवर्क बनाने तथा विश्व के अलग-अलग क्षेत्रों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए भी सुधार आवश्यक हैं।