मार्च 2024 में, उत्तराखंड के समान नागरिक संहिता (UCC) विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी। इस विधेयक के अधिनियम बन जाने पर अब उत्तराखंड, स्वतंत्रता के बाद UCC अपनाने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।
समान नागरिक संहिता (UCC) के बारे में
- अर्थ: इसका उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए धर्म, लिंग, या जातिगत भेदभाव के बिना एक समान व्यक्तिगत कानून (पर्सनल लॉ) प्रणाली स्थापित करना है। इसके तहत विवाह, तलाक, गोद लेना, संपत्ति का उत्तराधिकार जैसे मुद्दे शामिल रहेंगे।
- संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत राज्य की नीति के निदेशक तत्वों (भाग IV) में पूरे भारत में UCC लागू करने की बात कही गई है।
- वर्तमान स्थिति: वर्तमान में, ऐसे मामले संबंधित धार्मिक कानूनों द्वारा शासित होते हैं।
- गोवा में पुर्तगाली नागरिक संहिता, 1867 में UCC के समान प्रावधान हैं।
समान नागरिक संहिता (UCC) की आवश्यकता क्यों है?
- लैंगिक समानता: विवाह, तलाक आदि से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों में अक्सर महिलाओं के खिलाफ भेदभाव देखने को मिलता है।
- सामाजिक सामंजस्य: भारत की कानूनी प्रणाली में धार्मिक और नृजातीय विविधता विभाजन को बढ़वा दे सकती है।
- भारतीय समाज में सुधार करना: आस्था और विश्वास के नाम पर समाज में प्रचलित अनेक अंधविश्वासों तथा अति-रूढ़िवादी प्रथाओं को समाप्त करना भी जरूरी है।
समान नागरिक संहिता (UCC) को लागू करने में मुख्य चुनौतियां

- व्यक्तिगत अधिकारों और राज्य द्वारा हस्तक्षेप के बीच संतुलन सुनिश्चित करना: संविधान का अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। साथ ही, संविधान की 5वीं और 6ठी अनुसूची जनजातीय रीति-रिवाजों व विश्वासों का संरक्षण सुनिश्चित करती है।
- धार्मिक समूहों और धार्मिक नेताओं द्वारा विरोध: उनका कहना है कि यह उनके धार्मिक कानूनों एवं परंपराओं में हस्तक्षेप कर सकती है। इससे सामाजिक और राजनीतिक तनाव उत्पन्न हो सकते हैं।
निष्कर्ष
हमें एक पंथनिरपेक्ष संहिता बनाने की आवश्यकता है, जो समानता, न्याय और समावेशिता जैसे संवैधानिक सिद्धांतों को बढ़ावा दे, न कि जबरदस्ती एकरूपता लागू करने पर जोर दे।