एक अध्ययन में कहा गया है कि लोगों के बढ़ते जीवन स्तर को समझने के लिए भारत में गरीबी मापने के मौजूदा तरीकों में बदलाव की सख्त जरूरत है | Current Affairs | Vision IAS
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    एक अध्ययन में कहा गया है कि लोगों के बढ़ते जीवन स्तर को समझने के लिए भारत में गरीबी मापने के मौजूदा तरीकों में बदलाव की सख्त जरूरत है

    Posted 03 Mar 2025

    8 min read

    इस अध्ययन में गरीबी और असमानता में आए बदलावों पर प्रकाश डालते हुए 2022-24 के घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के आंकड़ों की तुलना 2011-12 के आंकड़ों से की गई है। 

    अध्ययन के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र

    • पावर्टी हेडकाउंट रेशियो (HCR) में काफी सुधार हुआ है। 1.90 डॉलर PPP (क्रय शक्ति समता) पर, यह अनुपात 2011-12 में लगभग 12% था, जो घटकर 2023-24 में 1% हो गया है।
      • पावर्टी हेडकाउंट रेशियो (HCR): गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली आबादी का प्रतिशत। 
    • सबसे गरीब परिवार: धनी परिवारों की तुलना में सबसे गरीब परिवारों के उपभोग व्यय में अधिक वृद्धि देखी गई है।
    • मौजूदा गरीबी की रेखा (तेंदुलकर और रंगराजन समिति): गरीबी के ये मापदंड अब पुराने हो चुके हैं, क्योंकि ये आज के गरीब परिवारों की वास्तविक स्थिति और उनके अभावों को सटीक रूप से नहीं दर्शाते हैं।

    अध्ययन में सापेक्ष गरीबी की दो नई सीमाएं प्रस्तावित की गई हैं:

    • सापेक्ष गरीबी रेखा (उपभोग के एक-तिहाई पर्सेंटाइल के आधार पर): इस पद्धति में सरकार की ओर से तय गरीबी रेखा की बजाय, समाज के सबसे कम आय वाले 33 प्रतिशत लोगों के व्यय को गरीबी का मापदंड बनाया जाता है।
    • आय के आधार पर सापेक्ष गरीबी रेखा: यूरोप में, सभी व्यक्तियों की आय को क्रम में रखने पर जो मीडियन इनकम यानी मध्य आय निकलती है, उसके 60% से कम आय वाले व्यक्ति को गरीब माना जाता है।
      • यदि इस पद्धति को भारत में लागू किया जाए, तो 2023-24 में 16.5% आबादी इस सीमा से नीचे थी।  

    नई गरीबी रेखा का महत्त्व:

    • यह वर्तमान समय में गरीबों की वास्तविक स्थिति और उनके अभावों को ध्यान में रखते हुए अपडेटेड उपभोग पैटर्न को दर्शाती है।
    • यह सुनिश्चित करती है कि आर्थिक संवृद्धि के साथ गरीबी रेखा अपने आप समायोजित होती रहे।

    यह आधुनिक भारत में गरीबी का अधिक सटीक माप प्रदान करती है।

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    • गरीबी और असमानता
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    • गरीबी की रेखा
    • सापेक्ष गरीबी रेखा
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