भारत में अलग-अलग क्षेत्रकों में रोजगार के अवसरों में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। हालांकि, इस सकारात्मक रुझान के बावजूद, वेतन में वृद्धि बढ़ती मुद्रास्फीति या महंगाई के अनुरूप नहीं है।
वेतन वृद्धि में ठहराव की स्थिति
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) वार्षिक रिपोर्ट 2023-24:
- रोजगार में वृद्धि: श्रमिक-जनसंख्या अनुपात 2017-18 के 34.7% से बढ़कर 2023-24 में 43.7% हो गया, जो दर्शाता है कि रोजगार वृद्धि जनसंख्या वृद्धि से अधिक है।
- वेतन संबंधी असमानता: अस्थायी श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी बढ़ी है, लेकिन नियमित वेतनभोगी कर्मचारियों का पारिश्रमिक मुद्रास्फीति के कारण स्थिर बना हुआ है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24:
- कॉर्पोरेट जगत की लाभप्रदता: यह वित्त वर्ष 2024 में 15 साल में सर्वाधिक हो गई थी। वित्त वर्ष 2024 में कॉर्पोरेट जगत का लाभ 22.3% बढ़ा है, लेकिन रोजगार में मात्र 1.5% की वृद्धि हुई है।
- वेतन वृद्धि में ठहराव: पिछले चार वर्षों में भारतीय कंपनियों की EBITDA मार्जिन 22% पर स्थिर बने रहने के बावजूद, वेतन वृद्धि विशेष रूप से प्रवेश स्तर के IT संबंधी पदों पर धीमी रही है।
चिंताएं
- अर्थव्यवस्था में गिरावट: अधिक कॉर्पोरेट लाभ और स्थिर वेतन वृद्धि से मांग में कमी आ सकती है, जिससे अर्थव्यवस्था की गति धीमी हो सकती है।
- आय में असमानता: मुख्य रूप से बड़ी कंपनियों सहित कॉर्पोरेट जगत के मुनाफे में असमान वृद्धि से आय संबंधी असमानता बढ़ने का खतरा है।
कंपनियों की बढ़ती लाभप्रदता के साथ कर्मचारियों के वेतन वृद्धि को संतुलित करने की आवश्यकता
- सतत आर्थिक संवृद्धि के लिए रोजगार से होने वाली आय में वृद्धि होना जरूरी है। इससे सीधे तौर पर उपभोक्ता द्वारा खर्च में वृद्धि होती है तथा उत्पादन क्षमता में निवेश को बढ़ावा मिलता है।
- दीर्घकालिक सतत आर्थिक संवृद्धि सुनिश्चित करने के लिए पूंजी और श्रम के बीच आय का निष्पक्ष व तर्कसंगत वितरण अनिवार्य है।