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एक अध्ययन में वैश्विक जैव विविधता संरक्षण के लिए समुद्री घास के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया

Posted 08 Mar 2025

16 min read

हाल ही में, नेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरनमेंट में एक लेख प्रकाशित हुआ था। इसमें समुद्री घास द्वारा जैव विविधता और पारिस्थितिकी-तंत्र सेवाओं को समर्थन; इसके समक्ष विद्यमान मुख्य खतरों और लाभों को लेकर चर्चा की गई थी। 

समुद्री घास के बारे में 

  • ये समुद्री पुष्पीय पादप हैं जो उथले व तटीय जल में उगते हैं। इनका विकास आमतौर पर मुहाने और समुद्री पर्यावासों में होता है। 
  • समुद्री घास को "समुद्र के फेफड़े" कहा जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि ये प्रकाश संश्लेषण के जरिए ऑक्सीजन का उत्पादन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह ऑक्सीजन समुद्री पारिस्थितिकी-तंत्र के लिए अत्यधिक आवश्यक है। 
  • समुद्री घास का वितरण 
    • यह अंटार्कटिका को छोड़कर लगभग सभी महाद्वीपों में पाई जाती है। 
    • भारत में वितरण: 
      • पूर्वी तट पर मन्नार की खाड़ी और पाक खाड़ी क्षेत्र में पाई जाती है, 
      • पश्चिमी तट पर कच्छ की खाड़ी क्षेत्र, अरब सागर में लक्षद्वीप के अलग-अलग द्वीपों के लैगून और बंगाल की खाड़ी में अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में पाई जाती है। 

समुद्री घास का महत्त्व

  • जैव विविधता समर्थन: समुद्री घास मैदान संरक्षण वाली 121 प्रजातियों और 746 मछली प्रजातियों के लिए पर्यावास प्रदान करते हैं।
  • कार्बन प्रच्छादन (Carbon Sequestration): समुद्री घास वर्षावनों की तुलना में 35 गुना तेजी से कार्बन का प्रच्छादन करती हैं। ये महासागरों के कार्बन का 10-18% संग्रहीत करती हैं, जबकि समुद्री नितल के केवल 0.1% भाग को कवर करती हैं।
  • तटीय संरक्षण: समुद्री घास के मैदान समुद्री लहरों के प्रभाव को कम करते हैं। इससे तटीय क्षेत्रों की तूफानों और अपरदन से रक्षा होती है।
  • आर्थिक मूल्य: समुद्री घास पारिस्थितिकी-तंत्र का वार्षिक मूल्य लगभग 6.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर आंका गया है। ये वैश्विक मात्स्यिकी के 20% हिस्से का समर्थन करती हैं, जिससे मत्स्यन और पर्यटन उद्योग को लाभ होता है।

समुद्री घास के समक्ष खतरे: 

  • शहरी, औद्योगिक और कृषि अपवाह; तटीय विकास; ड्रेजिंग; अनियंत्रित मत्स्यन व नौका विहार गतिविधियां; जलवायु परिवर्तन आदि।

समुद्री घास के संरक्षण के लिए आरंभ की गई पहलें 

वैश्विक स्तर पर शुरू की गई पहलें

  • UNEP कम्युनिटी मैनुअल: UNEP और उसके भागीदारों ने समुद्री घास संरक्षण के लिए समुदाय आधारित परियोजनाओं का मार्गदर्शन करने हेतु एक मैनुअल जारी किया है।
  • सीग्रास वॉच: यह एक सहयोगात्मक कार्यक्रम है। इसके तहत स्वयंसेवकों व संगठनों को समुद्री घास के पर्यावासों की निगरानी और संरक्षण के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
  • ब्लू कार्बन इनिशिएटिव: इस पहल के तहत कार्बन प्रच्छादन और जलवायु परिवर्तन शमन के लिए समुद्री घास सहित तटीय पारिस्थितिकी प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

भारत में शुरू की गई पहलें

  • राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति: यह नीति तटीय समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों में मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों के साथ-साथ समुद्री घास के महत्त्व का भी उल्लेख करती है।
  • जलवायु लचीलापन परियोजना: इस परियोजना का तटीय जलवायु के प्रति लचीलापन बढ़ाने के लिए आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा में संचालन किया जा रहा है। इसमें समुद्री घास जैसे प्राकृतिक पारिस्थितिकी-तंत्रों का संरक्षण और पुनर्बहाली शामिल है। इस परियोजना को ग्लोबल क्लाइमेट फंड से अनुदान के रूप में सहायता प्राप्त है।
  • Tags :
  • नेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरनमेंट
  • समुद्री घास
  • समुद्र के फेफड़े
  • कार्बन प्रच्छादन
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