हाल ही में, नेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरनमेंट में एक लेख प्रकाशित हुआ था। इसमें समुद्री घास द्वारा जैव विविधता और पारिस्थितिकी-तंत्र सेवाओं को समर्थन; इसके समक्ष विद्यमान मुख्य खतरों और लाभों को लेकर चर्चा की गई थी।
समुद्री घास के बारे में
- ये समुद्री पुष्पीय पादप हैं जो उथले व तटीय जल में उगते हैं। इनका विकास आमतौर पर मुहाने और समुद्री पर्यावासों में होता है।
- समुद्री घास को "समुद्र के फेफड़े" कहा जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि ये प्रकाश संश्लेषण के जरिए ऑक्सीजन का उत्पादन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह ऑक्सीजन समुद्री पारिस्थितिकी-तंत्र के लिए अत्यधिक आवश्यक है।
- समुद्री घास का वितरण
- यह अंटार्कटिका को छोड़कर लगभग सभी महाद्वीपों में पाई जाती है।
- भारत में वितरण:
- पूर्वी तट पर मन्नार की खाड़ी और पाक खाड़ी क्षेत्र में पाई जाती है,
- पश्चिमी तट पर कच्छ की खाड़ी क्षेत्र, अरब सागर में लक्षद्वीप के अलग-अलग द्वीपों के लैगून और बंगाल की खाड़ी में अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में पाई जाती है।
समुद्री घास का महत्त्व
- जैव विविधता समर्थन: समुद्री घास मैदान संरक्षण वाली 121 प्रजातियों और 746 मछली प्रजातियों के लिए पर्यावास प्रदान करते हैं।
- कार्बन प्रच्छादन (Carbon Sequestration): समुद्री घास वर्षावनों की तुलना में 35 गुना तेजी से कार्बन का प्रच्छादन करती हैं। ये महासागरों के कार्बन का 10-18% संग्रहीत करती हैं, जबकि समुद्री नितल के केवल 0.1% भाग को कवर करती हैं।
- तटीय संरक्षण: समुद्री घास के मैदान समुद्री लहरों के प्रभाव को कम करते हैं। इससे तटीय क्षेत्रों की तूफानों और अपरदन से रक्षा होती है।
- आर्थिक मूल्य: समुद्री घास पारिस्थितिकी-तंत्र का वार्षिक मूल्य लगभग 6.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर आंका गया है। ये वैश्विक मात्स्यिकी के 20% हिस्से का समर्थन करती हैं, जिससे मत्स्यन और पर्यटन उद्योग को लाभ होता है।
समुद्री घास के समक्ष खतरे:
- शहरी, औद्योगिक और कृषि अपवाह; तटीय विकास; ड्रेजिंग; अनियंत्रित मत्स्यन व नौका विहार गतिविधियां; जलवायु परिवर्तन आदि।
समुद्री घास के संरक्षण के लिए आरंभ की गई पहलेंवैश्विक स्तर पर शुरू की गई पहलें
भारत में शुरू की गई पहलें
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