सुप्रीम कोर्ट ने महिला सशक्तीकरण के लिए मौजूदा कानूनों के सख्त कार्यान्वयन की आवश्यकता पर जोर दिया | Current Affairs | Vision IAS
News Today Logo

सुप्रीम कोर्ट ने महिला सशक्तीकरण के लिए मौजूदा कानूनों के सख्त कार्यान्वयन की आवश्यकता पर जोर दिया

Posted 08 Mar 2025

9 min read

ऐसी टिप्पणियों और निर्णयों के माध्यम से भारतीय न्यायपालिका ने समय-समय पर महिला सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

महिलाओं के सशक्तीकरण में न्यायपालिका की भूमिका

  • यौन उत्पीड़न की रोकथाम: विशाखा साहनी बनाम राजस्थान राज्य (1998) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश निर्धारित किए थे।
  • महिला अधिकारों को कायम रखना: शायरा बानो बनाम भारत संघ (2017) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक घोषित किया था और इसे महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया था।
  • लैंगिक समानता: दानम्मा @ सुमन सुरपुर बनाम अमर (2018) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने पैतृक संपत्ति में पुत्र के समान पुत्री के अधिकार को बरकरार रखा।
  • आपराधिक कानूनों में सुधार: जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (2018) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 497 को खारिज कर दिया था। यह धारा एक विवाहित महिला को उसके पति की संपत्ति के रूप में मानते हुए व्यभिचार को अपराध मानती है। 
  • वेतन समानता: रणधीर सिंह बनाम भारत संघ (1982) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 39(d) के तहत "समान कार्य के लिए समान वेतन" को एक संवैधानिक लक्ष्य के रूप में मान्यता दी थी।

महिला सशक्तीकरण हेतु अन्य संवैधानिक और विधायी उपाय

  • संवैधानिक
    • मौलिक अधिकार: अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15(1) (लैंगिक आधार पर भेदभाव का निषेध), आदि।
    • राज्य की नीति के निदेशक तत्व: अनुच्छेद 42 (राज्य कार्य की उचित और मानवीय स्थितियां सुनिश्चित करने एवं मातृत्व राहत के लिए प्रावधान करेगा) आदि।
  • विधायी: घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005; कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 आदि।
  • Tags :
  • महिला सशक्तीकरण
  • लैंगिक समानता
  • शायरा बानो बनाम भारत संघ
Watch News Today
Subscribe for Premium Features